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________________ २४२ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ४, ४२. काऊण आउअं बंधावेंतो भूदबलिआइरियो जाणावेदि जहा जीविदद्धादो अहिया आबादा णत्थि ति । अण्णाउअबंधगद्धार्द्दितो जलचराउअबंधगद्धा दीहा त्ति कट्टु पुणरवि जलचरेसु पुष्वकोडाउअं बंधाविदो । कधमेदं नव्वदे ? एदम्हादो चेव सुत्तादो, अण्णा पुरवि जलचरेसु पुष्वकोडाउअबंधणियमे फलाभावाद । पुव्वकोडीदो थोवाउवजलचरेसु आउअं किण्ण बंधाविदो ? ण, जलचरपुव्वको डाउअबंधगद्धं मोसूण अण्णासिं तदद्धाणमेत्थ बहुत्ताभावादा | दीहार आउ अबंधगद्धाए तप्पा ओग्गउक्कस्सजोगेण बंधदि ॥ ४२ ॥ सुगममेदं । जोगजवमज्झस्स उवरि अंतोमुहुत्तमच्छिदो ॥ ४३॥ एदं पि सुगमं । चरिमे जीवगुणहाणिट्ठाणंतरे आवलियाए असंखेज्जदिभागमच्छिदो ॥ ४४ ॥ होनेपर भी जितना जीवित काल व्यतीत हुआ है उससे आधेको ही आबाघा करके आयुका बन्ध करानेवाले भूतबलि आचार्य ज्ञापन कराते हैं कि जितना जीवित काल गया है उससे आधे से अधिक आबाधा नहीं होती । अन्य आयुबन्धककालोंसे जलचरोंकी मायुका बन्धककाल दीर्घ है, ऐसा समझ कर फिर भी जलचरोंमें पूर्वकोटि प्रमाण आयुका बन्ध कराया है । शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान --- इसी सूत्र से जाना जाता है, अन्यथा फिरसे जलचरों में पूर्वकोटि प्रमाण आयुबन्धके नियमका कोई प्रयोजन नहीं रहता । शंका- पूर्वकोटिसे स्तोक आयुवाले जलचरोंमें आयुको क्यों नहीं बंधाया ? समाधान —— नहीं, क्योंकि, जलचरोंमें पूर्वकोटि प्रमाण आयुके बन्धक कालको छोड़कर अन्य बन्धककाल बड़े नहीं पाये जाते । दीर्घ आयुबन्धककालके भीतर उसके योग्य उत्कृष्ट योगसे बांधता है ॥ ४२ ॥ यह सूत्र सुगम है । योगयवमध्य के ऊपर अन्तर्मुहूर्त काल तक रहा ॥ ४३ ॥ यह सूत्र भी सुगम है । अन्तिम जीवगुणहानिस्थानान्तर में आवली के असंख्यातवें भाग काल तक रहा ॥४४॥ १ तदा दीर्घायुर्बन्धाद्धया तत्प्रायोग्यसंक्लेशेन तत्प्रायोग्योत्कृष्टयोगेन च बध्नाति । गो. जी. ( जी. प्र. ) १५८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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