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________________ १९.1 छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, २, ३, ३६. से भाउ णियमेण वझदि ति एयंतो। किंतु तस्थ आउअबंधपाओग्गा होति ति जावं होधि । णिस्वक्कमाउआ पुण छम्मासासेसे आउअबंधपाओग्गा होति । तत्य बि एवं चेक अट्टांगरिसाओ वत्तवाओ।) - एत्य जीवप्पाबहुगं उच्चदे । तं जहा - सव्वत्थोवा अट्ठहि आगरिसाहि आउअं कंषमाणया जीवा। सत्तहि आगस्सिाहि आउअं बंधमाणया जीवा संखेज्जगुणा । छहि मांगरिसाहि आउअं बंधमाणया जीवा संखेज्जगुणा । पंचहि आगरिसाहि आउभं बंधमाणया जीवा संखेज्जगुणाः। चदुहि आगरिसाहि आउअं बंधमाणया जीवा संखेज्जगुणा । तीहि भागरिसाहि भाउअं बंधमाणया जीवा संखेज्जगुणा । दोहि आगरिसाहि आउअं बंधमाणया जीवा संखेज्जगुणा । पढमीए आगरिसाए आउअं बंधमाणया जीवा संखेज्जगुणा । अहि आगरिसाहितो संचिददव्वं पेक्खिदूण पढमागरिमाए संचिददव्वं संखेजगुणमिदि पढमागरिसाए चेव बंधाविदं। जो दीहाए आउअबंधगद्धाए बंधदि सो उक्कस्सदव्यसामी होदि, अण्णो ण होदि त्ति वुत्तं । तप्पाओग्गसंकिलेसेणेत्ति चउत्थं विसेसणं किमढें कदं ? उक्कस्ससंकिलेसण होने तक आयुबन्धक योग्य होते हैं, ऐसा ग्रहण करना चाहिये । परन्तु विभागके क्षेत्र रहनेपर आयु नियमसे बंधती है, ऐसा एकान्त नहीं है। किन्तु उस समय जीब आयुबन्धके योग्य होते हैं. यह उक्त कथनका तात्पर्य है। और जो निरुपक्रमायुष्क जीव होते हैं वे अपनी भुज्यमान आयुमें छह माह शेष रहनेपर आयुबन्धके योग्य होते हैं। यहां भी इसी प्रकार आठ अपकर्षोंको कहना चाहिये। यहां जीवोंके अल्पबहुत्वको कहते हैं । यथा- आठ अपकर्षों द्वारा आयुको बांधनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं। सात अपकर्षों द्वारा आयुको बांधनेवाले जीव उनसे संख्यातगुणे हैं। छह अपकर्षों द्वारा आयुको बांधनेवाले जीव उनसे संख्यातगुण हैं। पांच अपकों द्वारा भायुको बांधनेवाले जीव उनसे संख्यातगुणे हैं । चार अपकर्षों द्वारा भाबुको बांधनेवाले जीव उनसे संख्यातगुणे हैं। तीन अपकर्षों द्वारा आयुको बांधनेवाले जीव उनसे संख्यातगुणे हैं। दो अपकर्षों द्वारा आयुको बांधनेवाले जीव उमसे सच्यातगुणे हैं। प्रथम (एक) अपकर्ष द्वारा आयुको बांधनेवाले जीव उनसे संख्यातमुणे हैं। चूंकि आठ अपकर्षों द्वारा संचित द्रव्यकी अपेक्षा प्रथम अपकर्ष द्वारा संचित भाद्रव्य संख्यातगुणा है, अत एवं प्रथम अपकर्षमें ही आयुको बंधाया है। को दीर्घ आयुबन्धककालमें आयुको गांधता है वह उत्कृष्ठ द्रव्यका स्वामी होता है, बम्ब नहीं होता । इसीलिये यह तीसरा विशेषण कहा गया है। शंका-'उसके योग्य सक्लेशसे' यह चतुर्थ विशेषण किसलिये किया है ? १ प्रतिषु 'अक्षा-' इति पाः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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