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१, २, १.] वेयणमहाहियारे सोलसणिोगद्दारणिदेसो केरिसो पओओ होदि त्ति णयमस्सिदण पओअपरूवणटुं वेयणणामविहाणमागयं । वेदणदव्वमेयवियप्पं' ण होदि, किंतु अणेयवियप्पमिदि जाणावणटुं संखेज्जासंखेज्जपोग्गलपडिसेहं काऊण अभव्वसिद्धिएहि अणतगुणा सिद्धेहिंतो अणतगुणहीणा पोग्गलक्खंधा जीवसमवेदा वेयणा होति त्ति जाणावणटुं वा वेयणदव्वविहाणमागयं । संखेज्जखेत्तोगाहणमोसारिय अंगु.. लस्स असंखेज्जदिभागमादि कादूण जाव घणलोगो ति वेयणादव्वाणमोगाहणा होदि त्ति जाणावणटुं वेयणखेत्तविहाणमागयं । वेयणदव्वक्खंधो वेयणभावमजहिदूण जहण्णेणुक्कस्सेण य एत्तियं कालमच्छदि त्ति जाणावणटुं वेयणकालविहाणमागयं । संखेज्जासंखेज्जाणंतगुणपडिसहं काऊण वेयणदव्वक्खंधम्मि अणताणतभाववियप्पजाणावण8 वेयणभावविहाणमागयं । . वेयणदव्वक्खेत्त-काल-भावा ण णिक्कारणा, किंतु सकारणा त्ति पण्णवणटुं वेयणपच्चयविहाणमागयं । जीवाणोजीवा एगादिसंजोगेण अट्ठभंगा वेयणाए सामिणो होति, ण होति ति. णए अस्सिदूण पण्णवणटुं वेयणसामित्तविहाणमागयं । बज्झमाण-उदिण्ण-उवसंतपयडिभेएण एगादि.. संजोगगएण णए अस्सिदूण वेयणवियप्पपण्णवणटुं वेयणवेयणविहाणमागयं । दव्वादिभेय
प्रयोग होता है, इस प्रकार नयके आश्रयसे प्रयोगकी प्ररूपणा करनेके लिये वेदननामविधान अधिकार आया है । वेदनाद्रव्य एक प्रकारका नहीं है, किन्तु अनेक प्रकारका है। ऐसा शान कराने के लिये अथवा संख्यात व असंख्यात पुद्गलोंका प्रतिषेध करके अभव्यसिद्धिकोसे अनन्तगुणे और सिद्धोंसे अनन्तगुणे हीन पुद्गलस्कन्ध जीवसे समवेत होकर वेदना रूप होते हैं, ऐसा ज्ञान कराने के लिये वेदनद्रव्यविधान अधिकार आया है। वेदनाद्रव्योंकी अवगाहना संख्यात-क्षेत्र नहीं है, किन्तु अंगुलके असंख्यातवें भागसे लेकर घनलोक पर्यन्त है; ऐसा जतलाने के लिये वेदनक्षेत्रविधान अधिकार आया है। वेदनाद्रव्यस्कन्ध बेदनात्वको न छोड़कर जघन्य और उत्कृष्ट रूपसे इतने काल तक रहता है, ऐसा ज्ञान करानेके लिये वेदनकालविधान अधिकार आया है । वेदनाद्रव्यस्कन्धमें संख्यातगुणे, असंख्यातगुणे और अनन्तगुणे भावविकल्प नहीं है, किन्तु अनन्तानन्त भावविकल्प हैं; ऐसा ज्ञान करानेके लिये वेदनभावविधान अधिकार आया है। वेदनाद्रव्य, वेदनाक्षेत्र, वेदनाकाल और वेदनाभाव निष्कारण नहीं हैं, किन्तु सकारण हैं; इस बातका ज्ञान कराने के लिये वेदनप्रत्ययविधान अधिकार आया है । एक आदि संयोगले आठ भंग रूप जीव व नोजीव वेदनाके स्वामी होते हैं या नहीं होते हैं, इस प्रकार नयोंके आश्रयसे ज्ञान करानेके लिये वेदनास्वामित्वविधान अधिकार आया है। एक-आदि-संयोग-गत बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त रूप प्रकृतियोंके भेदसे जो वेदनाभेद प्राप्त होते हैं उनका नयोंके आश्रयसे ज्ञान करानेके लिये वेदन-वेदनविधान अधिकार आया है। द्रव्यादिके भेदोंसे भेदको प्राप्त
१ प्रतिषु । मियवियप्पं ' इति पाठः।
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