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________________ २] छक्खंडागमे वेयणाखंड . [१, २, १. वेदणगइविहाणे वेदणअणंतरविहाणे वेदणसण्णियासविहाणे वेयणपरिमाणविहाणे वेयणभागाभागविहाणे वेयणअप्पाबहुगे त्ति ॥ १।) _पुव्वुद्दिद्वत्थाहियारसंभालणढे 'वेदणा त्ति' परविदं । एदाणि सोलस णामाणि पढमाविहत्तिअंताणि । कधं पुण एत्थ अंते एयारो ? 'एए छच्च समाणा' इच्चेएण कयएकारत्तादो। एदेसिमहियाराणं पिंडत्थो विसयदिसादरिसणटुं उच्चदे- वेयणासदस्स अणेयत्थेसु वट्टमाणस्स अपयदढे ओसारिय पयदत्थजाणावणटुं वेयणाणिक्खेवाणियोगद्दारं आगयं । सव्वो ववहारो णयमासेज अवहिदो त्ति एसो णामादिणिक्खेवगयववहारो कं कं णयमस्सिदूण द्विदो त्ति आसंकियस्स संकाणिराकरणटुं अव्वुप्पण्णजणव्वुप्पायणटुं वा वेयण-णयविभासणदा आगया । बंधोदय-संतसरूवेण जीवम्मि हिदपोग्गलक्खंधेसु कस्स कस्स णयस्स कत्थ कत्थ ......................................... विधान, वेदनगतिविधान, वेदनअनन्तरविधान, वेदनसन्निकर्षविधान, वेदनपरिमाणविधान, वेदनमागाभागविधान और वेदनअल्पबहुत्व ॥१॥ पूर्वोद्दिष्ट अर्थाधिकारका स्मरण करानेके लिये सूत्र में 'वेदना' इस पदका निर्देश किया है । ये सोलह नाम प्रथमा विभक्त्यन्त हैं। __ शंका-यहां इन सोलह पदोंके अन्त में एकारका होना कैसे सम्भव है ? समाधान- 'एए छच्च समाणा' इस सूत्रसे यहां एकारका आदेश किया। गया है, इसलिये वैसा होना सम्भव है । अब विषयकी दिशा दिखलाने के लिये इन अधिकारों का समुदयार्थ कहते हैंवेदना शब्द अनेक अर्थों में वर्तमान है, उनमेंसे अप्रकृत अर्थोको छोड़कर प्रकृत अर्थका ज्ञान करानेके लिये वेदनानिक्षेपानुयोगद्वार आया है। चूंकि सभी व्यवहार नयके आश्रयसे अवस्थित है अतः यह नामादि-निक्षेपगत व्यवहार किस किस नयके आश्रयसे स्थित है, एसी आशंका जिसे है उसकी उस शंकाका निवारण करनेके लिये अथवा अव्युत्पन्न जनोंको व्युत्पन्न करानेके लिये वेदन-नयविभाषणता अधिकार आया है । जो पुद्गलस्कन्ध बन्ध, उदय और सत्त्व रूपसे जीवमें स्थित हैं उनमें किस किस नयका कहां कहां कैसा १ प्रतिषु 'पुग्वुट्टित्ताहियार ' इति पाठः । २ प्रतिषु · विहात्ति ' इति पाठः । ३ प्रतिषु । एक्कारचादो' इति पाठः। जयधवला भा. १, पृ. ३२६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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