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(सिरि-भगवंत-पुष्पदंत-भूदषलि-पणीदो
छक्खंडागमो सिरि-वीरसेणाइरिय-विरइय-धवला-टीका-समणियो
तस्स चउत्थे वेयणाखंडे
वेदणाणियोगद्दारं कम्मट्ठजणियवेयण-उवहिसमुत्तिण्णए जिणे णमिउं ।
वेयणमहाहियारं विविहहियारं परूवेगो ॥१॥) (वेदणा ति । तत्थ इमाणि वेयणाए सोलस अणियोगदाराणि णादव्वाणि भवंति-वेदणणिक्खेवे वेदणणयविभासणदाए वेदणणामविहाणे वेदणदव्वविहाणे वेदणखेत्तविहाणे वेदणकालविहाणे वेदणभावविहाणे वेदणपच्चयविहाणे वेदणसामित्तविहाणे वेदण-वेदणविहाणे
आठ कर्मों के निमित्तसे उत्पन्न हुई वेदनारूपी समुद्रसे पार हुए जिनोंको नमस्कार करके जो विविध अधिकारों में विभक्त है ऐसे वेदना नामक महाधिकारकी हम प्ररूपणा करते हैं ॥१॥
अब वेदना अधिकारका प्रकरण है। उसमें वेदनाके ये सोलह अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं-वेदननिक्षेप, वेदन-नयविभाषणता, वेदननामविधान, वेदनद्रव्यविधान, वेदनक्षेत्रविधान, . वेदनकालविधान, वेदनभावविधान, वेदनप्रत्ययविधान, वेदनस्वामित्वविधान, वेदन-वेदन
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