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________________ षटखंडागमकी प्रस्तावना पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध . ४०७ २३ लब्ध्यपर्याप्तकके उत्कृष्ट . निवृत्त्यपर्याप्तकके जघन्य ,, ,, निवृत्यपर्याप्तकके जघन्य लब्ध्यपर्याप्तकके उत्कृष्ट ४२६ ४ णिव्वत्तिअपज्जत्तयाण . णिवत्तिपज्जत्तयाणे , १६ निवृत्यपर्याप्तकोंके निर्वृत्तिपर्याप्तकोंके २ अ-आ-काप्रतिषु णिवत्तिअपज्जत्तयाण', ताप्रती ‘णिचत्तिअपज्जत्तियाण पति पाठः। ४२८ २० वह एकान्तानुवृद्धि वह तद्भवस्थ होनेके द्वितीय समयमें क एकान्तानुवृद्धि ,, २१ तद्भवस्थ होनेके द्वितीय ४२९ ६ -णिव्वत्तिअपज्जत्ताणं -णिव्वत्तिपज्जत्ताणं , २१ निर्वृत्त्यपर्याप्तोंके निर्वृत्तिपर्याप्तोंके , ३२ x x x १ प्रतिषु ‘णिव्वचिअपज्जताणं ' इति पाठः । ४३१ ४ णिव्वत्तिअपज्जत्ताणं णिव्वत्तिपज्जत्ताणं ___, १८ निर्वृत्त्यपर्याप्तोंके निर्वृत्तिपर्याप्तोंके ४४९ ४ केत्तियमेत्तेण ? चरिमवग्गणाए केत्तियमेत्तेण १चरिमवग्गणमेत्तेण अचरिमासु वग्गणासु जीवपदेसा:विसेसाहियां । केत्तिकै मेत्तेण ? चरिमवग्गणाए ,, १८ हैं ? चरम वर्गणासे हैं ? चरम वर्गणा मात्रसे वे विशेष अधिक हैं । उनसे अचरम वर्गणाओं में जीवप्रदेश विशेष अधिक हैं। कितने मात्र विशेषसे के अधिक हैं ? चरम वर्गणासे , अ-आ-काप्रतिषु त्रुटितोऽयमेतावान् पाठः । ४५२ ६ तत्स्पर्द्धकम् । तत्स्पर्द्धकम् ४७० १० अणिज्जमाणे आणिज्जमाणे ४७९ १५ प्रकार प्ररूपणा प्रकार प्रमाणप्ररूपणा ४८५ ४ ॥२५॥ ४८८ १६ १५+१६ १५+२ . ४९४ २ जहणजोगट्ठाणफद्दएहि ऊण- जहण्णजोगट्ठाणफद्दएहि । [अजहण्णजोग ट्ठाणफयाणि विसेसाहियाणि जहण्णजोग फद्दएहि ] ऊण.:, १७ स्पर्धकोसे हीन सार्धकोसे विशेष अधिक हैं। [उनसे अजघन्य योगस्थानोंके स्पर्धक जघन्य योगस्थानके स्पर्धकोसे हीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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