SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ४, ३३. लामो त्तिपमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए एगरूवस्स अनंतिमभागो आगच्छदि । पुणो एदं' जहण्णपरित्ताणंतम्मि सोहिय सुद्ध सेसेण उक्कस्सदव्वे भागे हिदे पुब्विल्ललादों परमाणुत्तरमागच्छदि । एदम्मि उक्कस्सदव्वादो सोहिदे अणंतरहेट्ठिमट्ठाणमुप्पज्जदि । असंखेज्जाणंताणं विच्चाले उप्पत्तीदो एसा अवत्तव्वपरिहाणी । अनंतभागहाणी वा, उक्कस्सअसंखेज्जादो उवरिमसंखाए वट्टमाणत्तादो । पुणो एगरूत्रधरिददुभागं विरलिय उवरिमेग - रूवधरिदं समखंड करिय दिण्णे दो-दो परमाणू पावेंति । ते उवरिमविरलणरुवधरिदेसु समयाविरोहेण दादूण समकरणे कीरमाणे परिहीणरूवाणं पमाणं बुच्चदे । तं जहा रूवाहियहेट्टिमविरलणमेत्तद्धाणं गंतॄण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो उवरिमविरलणम्मि किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदमिच्छमोवट्टिय लद्धं उवरिमविरलणाए अवणिय उक्करसदवे भागे हिदे परिहाणिदव्वमागच्छदि । तम्मि उक्कस्सदव्वम्मि सोहिदे सुद्ध से सं अणंतरट्ठाणं होदि । एवं परमाणुत्तरादिकमेण णदव्वं जाव अनंतभागहाणीए चरिमवियप्पोति । हानि प्राप्त होगी, इस प्रकार फल राशिसे इच्छा राशिको गुणित कर उसमें प्रमाण राशिका भाग देने पर एक अंकका अनन्तवां भाग आता है । यह अवक्तव्य पुनः इसको जघन्य परीतानन्तमेंसे कम करके जो शेष रहे उसका उत्कृष्ट द्रव्यमै माग देनेपर पूर्वोक्त लब्धसे एक परमाणु अधिक आता है । इसको उत्कृष्ट द्रव्यमेंसे कम करनेपर अनन्तर अधस्तन स्थान उत्पन्न होता है । असंख्यातभागहानि और अनन्तभागहानिके बीच में उत्पन्न होनेके कारण हानि है । अथवा इसे अनन्तभागहानि भी कह सकते हैं, क्योंकि, वह उत्कृष्ट असंख्यातसे उपरिम संख्या में वर्तमान है । पुनः एक अंकके प्रति प्राप्त राशिके द्वितीय भागका विरलन कर उपरिम विरलन अंकके प्रति प्राप्त राशिको समखण्ड करके देने पर दो दो परमाणु प्राप्त होते हैं । उनको उपरिम विरलन के प्रति प्राप्त द्रव्यमें यथाविधि देकर समीकरण करनेपर जो हीन अंक आते हैं - T प्रमाण कहते हैं । यथा - एक अधिक अधस्तन विरलन मात्र स्थान जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो उपरिम विरलन में कितनी हानि प्राप्त होगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित कर जो प्राप्त हो उसे उपरिम विरलनमें से घटाकर शेषका उत्कृष्ट द्रव्यमें भाग देनेपर परिहीन द्रव्य भाता है । उसको उत्कृष्ट द्रव्यमेंसे कम करनेपर जो शेष रहे वह अनन्तर स्थान होता है । इस प्रकार एक परमाणु अधिक आदिके क्रम से अनन्तभागहानिके अन्तिम विकल्प तक ले जाना चाहिये । १ ताप्रती ' एगं (दं)' इति पाठः । २ प्रतिषु ' पुव्विलद्धादो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy