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४, २, ४, ३३.] वैयणमहाहियारे वेयणदव्यविहाणे सामित्त
[२११ परिहाणी । कुदो ? उक्कस्सदव्वदुभागेण उक्कस्सदव्वे भागे हिदे दोरूवावलंभादो । पुणो उक्कस्सदव्वादो ओकड्डणवसेण तिणं परमाणूणं वियोगे जादे अणंतभागपरिहाणी चेव, उक्कस्सदव्वतिभागेण उक्कस्सदव्वे भागे हिंदे तिण्णिरूवुवलंभादो । एवमणंतभागहाणी चेव होदूण गच्छदि जाव जहण्णपरित्ताणतेण उक्कस्सदव्वं खंडिय एगखंडे उक्कस्सदव्वादो परिहीणं ति । पुणो जहण्णपरित्ताणंतं विरलिय उक्कस्सदव्वं समखंड करिय दिण्णे एक्केक्कस्स रूवस्स परिहीणदव्वपमाणं पावदि । पुणो हेट्ठिमट्ठाणमिच्छामो त्ति एगरूवधरिदपमाणं हेट्ठा विरलिय अण्णेगं तप्पमाणं दव्वं समखंड करिय दिण्णे विरलणरूवं पडि एगेगपरमाणू पावदि । पुणो तं उवरिमरूवधरिदेसु समयाविरोहेण पक्खित्ते परिहीणदव्वं होदि एगरूवपरिहाणी च लन्भदि । हेट्टिमविरलणादो उवरिमविरलणा अणंतगुणहीण त्ति एत्थ एगरूवपरिहाणी ण लब्भदि । पुणो केत्तियं लब्भदि त्ति उत्ते उच्चदेहेट्टिमविरलणं रूवाहियं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो उवरिमविरलणम्मि किं
भागका उत्कृष्ट द्रव्यमें भाग देनेपर दो अंक प्राप्त होते हैं। पुनः उत्कृष्ट द्रव्य. मेंसे अपकर्षण वश तीन परमाणुओंका वियोग होनेपर अनन्तभागहानि ही होती है, क्योंकि. उत्कृष्ट द्रव्यके तृतीय भागका उत्कृष्ट द्रव्यमें भाग देने पर तीन अंक प्राप्त होते हैं। इस प्रकार जघन्य परीतानन्तसे उत्कृष्ट द्रव्यको भाजित कर जो एक भाग प्राप्त हो उतना उत्कृष्ट द्रव्यमसे हीन होने तक अनन्तभागहानि ही होकर जाती है। फिर जघन्य परीतानन्तका विरलन कर उत्कृष्ट द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति जितना द्रव्य हीन होता है उसका प्रमाण प्राप्त होता है। किन्तु यहां नीचेका स्थान लाना इष्ट है इसलिये पूर्वोक्त विरलनके एक अंकके प्रति प्राप्त प्रमाणको नीचे विरलित कर दूसरे एकके प्रति प्राप्त हुए तत्प्रमाण द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर विरलनके प्रत्येक अंकके प्रति एक एक परमाणु प्राप्त होता है। पुनः उसको यथाविधि उपरिम विरलनके प्रत्येक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यमै मिलानेपर परिहीन द्रव्य होता है और एक अंककी हानि भी प्राप्त होती है। किन्तु अधस्तन विरलनसे उपरिम विरलन चूंकि अनन्तगुणी हीन है, अतः यहां एक अंककी हानि नहीं पायी जाती।
शंका- तो फिर कितनी हानि पायी जाती है ?
समाधान- उत्तरमें कहते हैं कि एक अधिक अधस्तन विरलन प्रमाण स्थान जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो उपरिम बिरलन में कितनी
१ प्रतिषु ' अणेगं ' इति पाठः ।
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