________________
२१० ]
छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २४, ३३.
मेत्तद्वाणं चडिदूण बद्धदव्वभागहारो किंचूणदोरूवाणि, सयलचरिमगुणहाणिदव्वधारणादो । दोगुणहाणीओ चडिदूर्ण बद्धदव्वभागहारो किंचूणेगरूवतिभाग सहिद एगरूवं, चरिम- दुचरिमगुणहाणिदव्वधारणादो । एवमुवरि सव्वत्थ सादिरेगमेगरूवभागहारो होदि । भागहारपरूवणा गदा ।
एदं सव्वं पिदव्वं घेत्तण समयपचद्धपमाणेण कदे कम्मट्ठिदीए असंखेज्जभागमेत्ता समयपत्रद्धा होंति, किंचूर्णादिवड्डरूवर्णणाणागुणहाणि सलागाहि गुणहाणिगुणिदमेत्तप्रमाणत्तादो । अथवा, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता, सव्वसमयपबद्धाणमुक्कस्ससंचयस्स एक्aम्हि काल असंभवादो' । एवमुत्रसंहारपरूवणा समत्ता ।
'तव्यदिरित्तमणुक्कस्सा ॥ ३३ ॥ )
------
तदो उक्कसादो वदिरित्तं जं दव्वं तमणुक्कस्सवेयणा होदि । तं जहा - ओकड्डूणवसेण उक्कस्सदव्वे एगपरमाणुणा परिहीणे अणुक्कस्सुक्कस्सं होदि । एत्थ का परिहाणी ? अनंतभागपरिहाणी, उक्कस्सदव्वेण उक्कस्सदव्वे भागे हिदे एगरूवोवलंभादो । ओ कडवसेण दोपरमाणुपरिहीणे बिदियमणुक्कस्साणमुपज्जदि । एसा वि अणतभाग
3
जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार कुछ कम दो अंक है, क्योंकि, उसमें अन्तिम गुणहानिका समस्त द्रव्य निहित है । दो गुणहानियां जाकर बांधे गये द्रव्यका भागद्दार कुछ कम एक अंकके तृतीय भागसे सहित एक अंक है, क्योंकि, उसमें चरम और द्विचरम गुणहानियोंका द्रव्य निहित है । इसी प्रकारसे आगे सब जगह साधिक एक अंक भागहार होता है । भागद्दारकी प्ररूपणा समाप्त हुई ।
इस सब द्रव्यको ग्रहण कर समयप्रबद्ध के प्रमाणसे करने पर कर्मस्थिति के असंख्यातवें भाग मात्र समयप्रबद्ध होते हैं, क्योंकि, वे कुछ कम डेढ़ अंकों से हीन नानागुणहानिकी शलाकाओंसे गुणहानिको गुणित करनेपर [ ( ६- ३ ) ८ × ] जो प्राप्त हो उतने मात्र हैं । अथवा वे पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र हैं, क्योंकि, सब समयप्रवद्धों के उत्कृष्ट संचयकी एक कालमें सम्भावना नहीं है । इस प्रकार उपसंहारप्ररूपणा समाप्त हुई ।
ज्ञानावरणकी उत्कृष्ट वेदनासे भिन्न अनुत्कृष्ट द्रव्य वेदना है ॥ ३२ ॥
उससे अर्थात् उत्कृष्ट द्रव्यसे भिन्न जो द्रव्य है वह अनुत्कृष्ट द्रव्य वेदना है । यथा - अपकर्षण वश उत्कृष्ट द्रव्यमेंसे एक परमाणुके हीन होनेपर अनुत्कृष्ट द्रव्यका उत्कृष्ट स्थान होता है ।
शंका- यहां कौनसी हानि होती है ?
समाधान- अनन्तभागहानि होती है, क्योंकि, उत्कृष्ट द्रव्यमें उत्कृष्ट द्रव्यका भाग देनेपर एक अंक प्राप्त होता है ।
अपकर्षण वश दो परमाणुओंकी हानि होनेपर द्वितीय अनुत्कृष्ट स्थान उत्पन्न होता है । यह भी अनन्तभागहानि है, क्योंकि, उत्कृष्ट द्रव्यके द्वितीय
१ प्रतिषु 'दिवङ्कुरूवूणेण ' इति पाठः । २ अप्रतौ 'संभवादो' इति पाठः । ३ अ-काप्रत्योः ‘परिहणिो' इति पाठः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org