SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४, २, ४, ३२ ] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं [ २०९ बिदियसमयसंचयस्स भागहारो दिवड्डगुणहाणीणमद्धं सदिरेयं । तं जहा- दिवङ्कगुणहाणीणमद्धं विरलिय समयपबद्धं समखंडं करिय दिण्ण रूवं पडि दो चरिमणिसेगा पावेंति । पुणो हेट्ठा णिसेगभागहारं दुगुणं विरलिय एगरूवधरिदं समखंड करिय दिण्ण रूवं पडि गोवुच्छविसेसो पावदि । एदेण पमाणेण उवरिमसव्वरूवधरिदेसु अवणिदे चरिमदुचरिमणिसेयपमाणं होदि । अवणिदगोवुच्छविसेसे तप्पमाणेण कीरमाणे लद्धसलागपमाणाणयणं वुच्चदे- रूवूणहट्टिमविरलणमेत्तविसेसेसु जदि एगरूवपक्खवा लब्भदि तो उवरिमविरलणमेत्तेसु किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदमिच्छमोवट्टिय लद्धे दिवड्वगुणहाणिअद्धम्मि पक्खिविय समयपबद्धे भागे हिदे बिदियसमयसंचओ आगच्छदि । एवं भागहारपरूवणा जाणिय कायव्वा जाव णेरइयचरिमसमयसंचिददव्वे त्ति । णवरि एगगुणहाणि द्वितीय समय सम्बधी संचयका भागहार साधिक डेढ़ गुणहानियोंका अर्थ भाग है। वह इस प्रकारसे - डेढ़ गुणहानियोंके अर्ध भागका विरलन कर समयप्रबद्धको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक अंकके प्रति दो चरम निषेक प्राप्त होते हैं। पुनः नीचे दुगुणे निषेकभागहारका विरलन कर एक अंकके प्रति प्राप्त राशिको समखण्ड करके देने पर प्रत्येक अंकके प्रति गोपच्छविशेष प्राप्त होता है। इस प्रमाणसे ऊपरके सब अंकोंके प्रति प्राप्त राशियों के कम करनेपर चरम और द्विचरम निषेकोंका प्रमाण होता है। कम किये गये गोपुच्छविशेषको उसके प्रमाणसे करनेपर प्राप्त शलाकाओंके प्रमाणके लानेकी विधि बतलाते हैं-- एक कम अधस्तन विरलन प्रमाण विशेषोंमें यदि एक अंकका प्रक्षेप पाया जाता है तो उपरिम विरलन प्रमाण विशेषों में कितने अंकोंका प्रक्षेप पाया जावेगा, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित कर लब्धको डढ़ गणहानियोके अधे भागमें मिलाकर समयप्रवद्ध में भाग देनेपर द्वितीय समय सम्बन्धी संचय उदाहरण- डेढ़ गुणहानि पै; इसका अर्ध भाग १४; ६३००३४ १०२४ = (५१२४२); दुगुणा निषेकभागहार १६४२ = ३२ (अधस्तन विरलन) १०२४ ३२ = ३२ गोपुच्छविशेष । एक कम अघस्तन विरलन (३२ -१ = ३१) प्रमाण विशेषोंमें यदि १ अंकका प्रक्षेप होता है तो उपरिम विरलन (३) प्रमाण विशेषोंमें कितने अंकोंका प्रक्षेप होगा-६३००- १ x १ = . ६३०० " १०२४१ ३१ १०२४ x ३१ ६३०० ६३००. ६३००३२x६३०० ३१७४४' १०२४ ' १०२४४३१ १०२४४३१' (५१२+४८०) द्वितीय समय सम्बन्धी संचय ।। इस प्रकार भागहारकी प्ररूपणा नारकीके अन्तिम समय सम्बन्धी संचय तक जानकर करना चाहिये । विशेष इतना है कि एक गुणहानि प्रमाण स्थान .. . ३२४६३०० - ९९२ : १०२४ ४३१ । , प्रतिषु गुणहाणिलद्धम्मि' इति पाठः । छ,वे. १५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy