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________________ ४, २, ४, ३३.1 चेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त [ २१३ संपहि उक्कस्समसंखेज्जासंखेज्जं विरलेऊण एगरूवधारदं समखंडं करिय दादण समकरणे कीरमाणे परिहीणरूवाणं पमाणं वुच्चदे। तं जहा- रूवाहियहेट्ठिमविरलणमेत्तद्धाणं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो उवरिमविरलणम्मि किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए एगरूवं लब्भदि । तम्मि उवरिमविरलणार अवणिदे उक्करसमसंखेज्जासंखेज्ज होदि । तेणुक्कस्सदब्वे भागे हिंदे असंखेज्जभागहाणिदव्वमागच्छदि । तम्मि उक्कस्सदव्वादो सोहिदे असंखेज्जभागहाणिट्ठाणं होदि । संपहि एदमुक्कस्समसंखेज्जासंखेज विरलेदूण उक्कस्सदव्वं समखंडं करिय दिण्णे असंखेज्जभागहाणिदव्वं होदि । हेट्ठा एगरूवधरिदपमाणं विरलेदूण पढमरूवधरिदं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि एगेगपमाणू पावदि । तमुवरिमरूवधारदेसु समयाविरोहेण दादूण समकरणं कदे परिहीणरूवपमाणं वुच्चदे । तं जहा- रूवाहियहेट्टिमविरलणमेत्तमद्धाणं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी' लब्भदि तो उवरिमविरलणम्मि किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदमिच्छ. मोवट्टिय उवरिमविरलणाए अवणिय लद्धेण उक्कस्सवे भागे हिदे असंखज्जभागहाणिदव्वं होदि । तम्मि उक्कस्सदव्वम्मि सोहिदे बिदियअसंखज्जभागहाणिट्ठाणं होदि । एवं ___ अब उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातका विरलन कर एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देकर समीकरण करनेपर जो परिहीन अंक आते हैं उनका प्रमाण कहते हैं। यथा- एक अधिक अधस्तन विरलन मात्र स्थान जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो उपरिम विरलनमें वह कितनी पायी जावेगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर एक अंक प्राप्त होता है। उसको उपरिम विरलनमेंसे कम करने पर उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात ता है। उसका उत्कृष्ट द्रव्यमें भाग देनेपर असंख्यात भाग हीन द्रव्य आता है। उसको उत्कृष्ट द्रव्यमेंसे कम करनेपर असंख्यातभागहानिका स्थान होता है। अब इस उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातका विरलन कर उत्कृष्ट द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर असंख्यात भाग हीन द्रव्य होता है। नीचे एक अंकके प्रति प्राप्त प्रमाणका विरलन कर प्रथम अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देने पर प्रत्येक एकके प्रति एक एक परमाणु प्राप्त होता है। उसको उपरिम विरलनके द्रव्यमें यथाविधि देकर समीकरण करनेपर जो परिहीन अंक आते हैं उनका प्रमाण कहते हैं। यथा- एक अधिक अघस्तन विरलन मात्र स्थान जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो उपरिम विरलनमें वह कितनी पायी जावेगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित कर उपरिम विरलनमेंसे कम करके लब्धका उत्कृष्ट द्रव्यमें भाग देने पर असंख्यात भाग हीन द्रव्य होता है। उसको उत्कृष्ट द्रव्यमेंसे कम करनेपर असंख्यातभागहानिका द्वितीय स्थान होता है । इस . १ प्रतिषु ' अवणिद-' इति पाठः। २ अ-कापत्योः -मुक्कस्ससंखेज्जासंखेज' इति पाठे। '३ प्रतिषु 'विरलिय-' इति पाठः । ४ तापतो .'परिहीणो (झणी)' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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