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१, २, ४, ३२.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं - [२०३
संपहि उदयगेवुच्छा समयपबद्धमत्तं ठविय | ६३०० गुणहाणीए गुणिदे गुणहाणिमेत्तसमयपबद्धमत्ता होति | ६३००८]। पुणो रूवूगगुणहाणीए संकलणाए पढमणिसेगे गुगिदे रूवूणगुणहाणिसंकलणमेत्तपढमणिसगा होति ५१२|७||। पुणो एदे दुरूवूणगुणहाणिसंकलणा-संकलणमेतगोवुच्छविसेसेहि ऊणा त्ति कटु गोवुच्छविसेसे
एकोत्तरपदवृद्धो रूपा जितश्च पदवृद्धः ।
गच्छस्संपातफलं समाहतं सन्निपातफलम् ॥ १५ ॥ एदीए अज्जाए आणिय पढमणिसेगपमाणेण कदे एत्तियं होदि | ५१२१६२। एवमेदाओ तिण्णि वि रासीओ पुधं ठवेदव्वाओ। सव्वगुणहाणिदव्वमप्पप्पणो पढमणिसेगपमाणेण कदे दुविहरिणेण सह एत्तिया चेव होति। णवरि गोवुच्छाओ गोउच्छ
गुणहानियोंका द्रव्य संचित है। चार गुणहानियाँका द्रव्य- ३२०० + १६०० + ८०० + ४०० = ६०००, ६४०० - ६००० = ४००; चार गुणहानियोंकी अन्योन्याभ्यस्त राशि २x२x२x२ = १६, ६४००१६ = ४०० ।
___अब उदयगोपुच्छाको समयबद्ध (६३००) प्रमाण स्थापित करके गुणहानिले गुणित करने पर वह गुणहानि मात्र समयप्रबद्धों के बराबर होती है ६३००४८। फिर एक कम गुणहानिके संकलनसे प्रथम निषेकको गुणित करने पर एक कम गुणहानिक संकलन प्रमाण प्रथम निषेक होते हैं- [प्रथम निषेक ५१२, एक कम गुणहानि ७ उसका संकलन ७४ = २८] ५१२४७४८ । पुनः ये उपर्युक्त निषेक दो अंकोंसे कम गुणहानिके दो चार संकलन प्रमाण गोपुच्छविशेषोंसे हीन हैं, ऐसा करके गोपुच्छविशेषोंको
एकको आदि लेकर एक अधिक क्रमसे पद प्रमाण वृद्धिको प्राप्त संख्यामें, अन्तमें स्थापित एकको आदि लेकर पद प्रमाण वृद्धिंगत संख्याका भाग देनेपर गच्छ के बराबर संपातफल अर्थात् प्रत्येक भंगका प्रमाण आता है। इसको आगे आगे स्थापित संख्याओंसे गुणित करनेपर सन्निपातफल अर्थात् द्विसंयोगी आदिक भंगोंका प्रमाण प्राप्त होता है ॥ १५ ॥
_इस आर्या ( गाथा ) के अनुसार लाकर [2 x = ५६, ३२ x ५६] प्रथम निषेकके प्रमाणसे करनेपर इतने होते हैं ५१२४.६४७। इस प्रकार इन तीनों ही राशियोको प्रथम स्थापित करना चाहिये । सब गुणहानियोंके द्रव्यको अपने अपने प्रथम निषेकके प्रमाणसे करनेपर दो प्रकारके ऋणके साथ इतने ही होते हैं।
........, अप्रतौ संकलणासंकलणासंकलण' इति पाठः। २ अ-काप्रत्योः ‘विससंहि', ताप्रती 'विसेसम्हि' इति पाठ ३ अ-काप्रत्यो। 'समाहित ' इति पाठः । ४ प. सं. पुस्तक ५ पू. १९३. क. पा. २, पृ.१...
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