________________
२०२] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ १, २, ४, ३२. भावादो । तदियसमयगोवुच्छी किंचूगसमयपबद्धमेत्ता, पढम-बिदियणिसगाभावादो । चउत्थसमयगोवुच्छा' वि किंचूणसमयपबद्धमत्ता, पढम-बिदिय-तदियणिसेगाभावादो। एवं णेदव्वं जाव गुणहाणिचरिमसमओ त्ति ।।
संपधि रूवाहियगुणहाणिमेत्तद्धाणं चडिदृण ट्ठिदसंचयगोवुच्छा चरिमगुणहाणिदव्वेणूणसमयपबद्धमत्ता । एत्तो उवरि एगादिएगुत्तरकमेण बिदियगुणहाणिगोवुच्छाओ अवणिय णेदव्वं जाव बिदियगुणहाणिचरिमसमओ त्ति । पुणो दोगुणहाणीओ समयाहियाओ चडिदण हिदसंचयगोवुच्छा चरिम-दुचरिमगुणहाणिदवणूणसमयपबद्धस्स चदुष्भागमेत्ता । उवरि एगादिएगुत्तरकमेण तदियगुणहाणिगोवुच्छाणमवणयणं कादूण णेदव्वं । एवं जाणिदूण वत्तव्वं जाव चरिमगुणहाणिचरिमसंचयगोवुच्छा त्ति । णवरि उवरि चडिदगुणहाणिसलागमेत्तचरिमादिगुणहाणिदव्वं समयपबद्धम्मि सोहिय गुणहाणिसलागाणमण्णोण्णब्भत्थरासिणा समयपषद्धे भागे हिदे इच्छिदगुणहाणीए पढमसंचयगोवुच्छा आगच्छदि त्ति वत्तव्वं ।
प्रथम निषेकका अभाव है । तृतीय समयमें स्थित संचय गोपुच्छा कुछ कम समयप्रबद्ध प्रमाण है, क्योंकि, उसमें प्रथम और द्वितीय निषेकोंका अभाव है। चतुर्थ समयमें स्थित गोपुच्छा भी कुछ कम समयप्रबद्ध प्रमाण है, क्योंकि, उसमें प्रथम, द्वितीय और तृतीय निषेकोंका अभाव है। इस प्रकार गुणहानिके अन्तिम समय तक ले जाना चाहिये ।
अब एक अधिक गुणहानि प्रमाण अध्वान जाकर स्थित संचय गोपुच्छा अन्तिम गुणहानिके द्रव्य से कम एक समयप्रबद्ध प्रमाण है। इससे आगे एकको आदि लेकर एक अधिक ऋमसे द्वितीय गुणहानिकी गोपुच्छाओंको कम करके द्वितीय गुणहानिके अन्तिम समय तक ले जाना चाहिये । पुनः एक समय से अधिक दो गुणहानियां जाकर स्थित संचय गोपुच्छा चरम और द्विचरम गुणहानिके द्रव्यसे हीन एक समयबद्धके चतुर्थ भाग प्रमाण है। इससे आगे एकको आदि लेकर एक अधिक क्रमसे तृतीय गुणहानिकी गोपुच्छाओंको कम करके ले जाना चाहिये। इस प्रकार अन्तिम गुणहानिकी अन्तिम संचय गोपुच्छा तक जानकर कथन करना चाहिये। विशेष इतना है कि आगे गत गुणहानियोंकी शलाकाओंके बराबर चरम आदि गुणहानियों के द्रव्यको समरप्रबद्ध में से कम करके गुणहानिशलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्त राशिका समय प्रबद्ध में भाग देनेपर इच्छित गुणहानि की प्रथम संचय गोपुच्छा आती है, ऐसा कहना चाहिये।
___ उदाहरण-चरमसमयवर्ती नारकीके द्वारा चरम समयसे चार गुणहानि पहिले जो समयप्रबद्ध बांधा गया था उसकी चार गुणहानियां उदयमें आचुकी हैं, दो
ताप्रतिपाठोऽयम् । अप्रतो तदियम्मयसीचदगोवुच्छा', काप्रती 'तदियसमयसंचयगोवुच्छा' इति पाठः। २ प्रतो 'उत्थसमगोवुच्छा' इति पाठः । ३ प्रतिषु ' • तदियगोवुच्छामावादो' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org