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________________ १, २ ४, ३३.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त [१९५ मेत्तपढमणिसेया होति । तेण दिवड्डगुणहाणिणा ओकड्डिददव्ये भागे हिदे एगसमयपबद्धएगसमयओकडिदस्स पढमसमयगीलदमागच्छदि । पुणो तस्सेव बिदियसमयगलिदे आणिज्जमाणे दिवड्डगुणहाणीओ विरलिय एगसमयपबद्धस्स एगसमयओकड्डिददव्वं समखंडं करिय दिण्णे पढमसमयगलिददव्वपमाणं पावदि । संपधि एदस्स हेट्ठा णिसगभागहारं विरलिय पढमसमयगलिदं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि गोवुच्छविसेसो पावदि । तं उवरिमविरलणसव्वरूवधरिदेसु अवणिय पयदगोवुच्छपमाणेण कीरमाणे समुप्पण्णसलागाणं पमाणमाणिज्जदे । तं जहा-रूवूणहेट्टिमविरलणमेत्तविसेसेसु जदि एगा सलागा लब्भदि तो उवरिमविरलणमेत्तविसेसेसु किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदमिच्छमोवट्टिदे पक्खेवसलागाओ लब्भंति । ताओ उवरिमविरलणाए पक्खिविय एगसमयओकड्डिददव्वे भागे हिदे तत्तो बिदियसमयगलिददब्वमागच्छदि । पुणा णिसेयभागहारस्स अद्धण रूवूणेण दिवड्डगुणहाणीओ ओवट्टिय जं लवं गुणहानिका अपकृष्ट द्रव्यमें भाग देनेपर एक समयप्रबद्धके एक समयमें अपकृष्ट द्रव्यमेंसे प्रथम समय में नष्ट हुआ द्रव्य आता है। फिर उक्त द्रव्यमसे ही द्वितीय समयमें नष्ट द्रव्यका प्रमाण लाने के लिये डेढ़ गुणहानियोंका विरलन कर एक समयप्रबद्धके एक समयमें अपकृष्ट द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर प्रथम समयमें नष्ट द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है। अब इसके नीचे निषेकभागहारका विरलन कर प्रथम समयमें नष्ट हुए द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक अंकके प्रति गोपुच्छविशेष प्राप्त होता है। उसको उपरिम विरलन राशिके सब अंकोंके प्रति प्राप्त द्रव्यमेंसे कम करके प्रकृत गोपुच्छके प्रमाणसे करनेपर उत्पन्न हुई शलाकाओंका प्रमाण लाते हैं। वह इस प्रकार है- एक कम अघस्तन विरलन प्रमाण विशेषोंमें यदि एक शलाका पायी जाती है तो उपरिम विरलन प्रणाम विशेषों में कितनी शलाकायें पायी जावेगीं, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अरवर्तित करनेपर प्रक्षेपशलाकायें प्राप्त होती हैं। उनको उपरिम विरलनमें मिलाकर एक समयमें अपकृष्ट द्रव्यमें भाग देने पर उसमें से द्वितीय समयमें नष्ट हुआ द्रव्य आता है। [समयप्रबद्ध से अपकृष्ट द्रव्यका प्रमाण ६१४४, डेढ़ गुणहानि १२, निषेकभागहार १६, ६१४४४१ = ५१२ प्रथम निषेक ५१२ - १६ = ३२ चयका प्रमाण; एक कम . निषेकभागहार १५ पर यदि एककी हानि होती है तो १२ पर कितनेकी हानि रोगी-१२-६.१२ + ६ - ६६ द्वितीय निषेकका भागाहार; ६९४४.४५ - ४८० ६४ द्वितीय निषेक]। फिर एक कम निषेकभागहार के अर्ध भागसे डेढ़ गुणहानियों को HAdsupausatar ................ प्रतिषु ' लढेण ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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