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________________ १९६] छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, १, १, ११ तमुवरिमविरलणाए पक्खिविय तेणेगसमयओकड्डिददव्वे भागे हिदे तत्तो तदियसमए गलिददव्वं होदि । एवं णेदव्वं जाव णेरइयदुचरिमसमए ओकड्डणाए गलिददव्वं ति । एवं सव्वसमयपबद्धाणमेगसमओकड्डिदएगसमयगलिददन्वपरूवणा कायव्वा । णवरिणेरड्यदुचरिमसमयप्पहुडि हेट्ठिमदोसु आवलियासु बद्धदव्वाणमेसो विचारो णस्थि, चरिमावलियाए बोकडणाभावादो दुचरिमावलियाए ओकड्डिददव्वस्स असंखेज्जलोगपडिभागेण विणासुवलभादो । एवमेगसमयपबद्धएगसमयओकड्डिदएगसमयगलिदस्स परूवणा गदा। संपधि एगसमयपबद्धएगसमयओकड्डिदणाणासमयगलिदं वत्तइस्सामो । तं जहाणेरइयचरिमसमयं मोत्तूण तिण्णिवाससहस्साणि हेट्ठा ओसरिय जो बद्धो समयपबद्धो तं बंधावलियादिक्कंतमोकड्डिय उदयावलियाए असंखेज्जलोगपडिभागिग दव्वं पक्खिविय पुणो उदयावलियबाहिरे सेसदव्वं गोवुच्छागारेण णिसिंचदि। तत्थ णेरइयदुचरिमसमयादो हेट्ठा णिक्खित्तदव्वं णट्ठमिदि तस्साणयणे भण्णमाणे एगसमयपबद्धस्स पढमसमयओकहिदअपवर्तित कर जो लब्ध हो उसको उपरिम विरलनमें मिलाकर उसका एक समय में भपकृष्ट द्रव्यमें भाग देनेपर उसमेंसे तृतीय समयमें नष्ट द्रव्य होता है [नि. भा. १६, डेढ़ गु. हा. ६३००, उपरिम विरलन ६३००, ६३०० : (१६-१)९००, ६३०० + ९९२ ६२९ । ६३०० - १२०० = ४४८ तृतीय समयमें नष्ट द्रव्य ] इस प्रकार नारक भवके द्विचरम समयमें अपकर्षण द्वारा नष्ट द्रव्य तक ले जाना चाहिये । इसी प्रकार सब समयप्रबद्धोंके एक समयमें अपकृष्ट द्रव्यमेंसे एक समयमें नष्ट हुए द्रव्यकी प्ररूपणा करना चाहिये। विशेषता इतनी है कि नारक भवके द्विचरम सम्यसे लेकर नीचेकी दो आवलियोंमें बांधे गये द्रव्योंके सम्बन्धमें यह विचार नहीं है, क्योंकि, चरम आवलीमें अपकर्णका अमाव है व विचरम भावली में अपकर्षण प्राप्त व्यका असंख्यात लोक प्रतिभागले विनाश पाया जाता है। इस प्रकार एक समयप्रबद्धके एक समयमें अपकृष्ट द्रव्यमेंसे एक समयमें नष्ट हुए द्रव्यकी प्ररूपणा समाप्त हुई।। - अब एक समयप्रवद्धके एक समयमें अपकृष्ट द्रव्यमेंसे नाना समयों में नष्ट द्रव्यकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है- नारक भवके अन्तिम समयको छोड़कर तीन हजार वर्ष नीचे आकर जो समयप्रबद्ध बांधा गया है, बंधावलीसे रहिरा उसका अपकर्षण कर उदयावलीमें असंख्यात लोक प्रतिभागको प्राप्त द्रव्यमें मिलाकर फिर उदयावलीके बाहिर शेष द्रव्यको गोपुच्छके आकारसे देता है। उसमें नारक भवके द्विचरम समयसे नीचे निक्षिप्त द्रव्य चूंकि नष्ट हो चुका है भत एव उसके लानेकी प्ररूपणामें एक समयप्रबद्ध के प्रथम समयमें अपकृष्ट द्रव्यको स्थापित १ तापतौ ‘विणाणु (सु) वलंभादो' इति पाठः । २ प्रतिषु ' बद्धो सो समयपक्यो' इति पाठः। । प्रतिषु ' मोवडिय' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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