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________________ छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, २, १, ३२. णट्ठा । णवरि णारगचरिमसमयप्पहुडि हेट्ठा समयाहियआबाधामेत्तसमयपबद्धाणमक्को वि ण णटो परमाणू, अप्पहाणीकयओकड्डणदव्वत्तादो । - संपहि आबाहं पहाणं कादूण भण्णमाणे आबाधाअंतरे बद्धसमयपबद्धाणमोकड्ड. णादो चेव विणासो। एगाए वि गोवुच्छाए जो णिसेगसरूवेण गलणं णत्थि, णारगचरिमसमयप्पहुडि उवरि णिक्खित्तपढमादिगोउच्छत्तादो। संपहि आबाधाभंतरे बद्धसमयपषद्धाणमोकड्डणाए णट्ठदव्वपरिक्खा कीरदे । तं जहा- एत्थ ताव तं चउन्विहं एगसमयपबद्धस्स एगसमयओकड्डिदादो एगसमयगलिदं, एगसमयपबद्धस्स एगसमयओकड्डिदादो णाणासमयगलिदं, एगसमयपबद्धस्स णाणासमयओकड्डिदादो णाणासमयगलिदं, णाणासमयपबद्धाण णाणासमयओकड्डिदादो णाणासमयगलिदं चेदि । तिण्हं वाससहस्साणं समयपंति ठवेदण कमेण चदुण्णं णट्ठदव्वाणं परूवणे कीरमाणे णारगचरिमसमयं मोत्तूण तिण्णि वाससहस्साणि हेट्ठा ओसरिय जो बद्धो समयपबद्धो तस्स ताव उच्चदे - एगसमयपबद्धं ठविय तस्स हेट्ठा ओकड्डुक्कड्डणभागहारे ठविदे एगसमयओकड्डिददव्वं होदि । तं सव्वमुदयावलियबाहिरे गोवुच्छागारेण णिसिंचदि त्ति पढमणिसेयरमाणेण कदे दिवड्ढगुणहाणिहै, शेष असंख्यात बहुभाग नष्ट नहीं हुआ है। विशेष इतना है कि नारक भवके अन्तिम समयसे लेकर नीचे एक समय अधिक आबाधा प्रमाण समयप्रबद्धोंका एक भी परमाणु नष्ट नहीं हुआ है, क्योंकि, यहां अपकर्षण द्रव्यको अप्रधान किया गया है। _____ अब आबाधाको प्रधान करके कथन करने पर आबाधाके भीतर बांधे गये समयप्रबद्धोंका अपकर्षण द्वारा ही विनाश होता है। कारण यह कि निषेक स्वरूपसे एक भी गोपुच्छका गलन नहीं है, क्योंकि, नारक भवके अन्तिम समयसे लेकर आगे प्रथमादिक गोपुच्छोंका निक्षेप किया गया है। अब आबाधाके भीतर बांधे गये समयप्रबद्धोंके अपकर्षण द्वारा नष्ट हुए द्रव्यकी परीक्षा करते हैं। वह इस प्रकार हैयहां उक्त द्रव्य एक समयप्रबद्धके एक समयमें अपकृष्ट द्रव्यमेंसे एक समयमें गलित हुआ, एक समयप्रबद्धके एक समय में अपकृष्ट द्रव्यमेंसे नानासमयोंमें गलित हुआ, एक समयप्रबद्धके नाना समयों में अपकृष्ट द्रव्यमेंसे नाना समयों में गलित हुआ, तथा समयप्रबद्धोंके नाना समयोंमें अपकृष्ट द्रव्यमेंसे नाना समयोंमें गलित हुआ, इस प्रकारसे चार प्रकारका है। तीन हजार वर्षोंकी समयपंक्तिको स्थापित करके क्रमले चारों मष्ट द्रव्योंकी प्ररूपणा करनेमें नारक भवके अन्तिम समयको छोढ़कर तीन हजार वर्ष नीचे उतर कर जो समयप्रबद्ध बांधा गया है उसके सम्बन्धमें प्ररुपणा करते हैं- एक समयप्रबद्धको स्थापित कर उसके नीचे अपकर्षण-उत्कर्षणभागहारको स्थापित करनेपर एक समयमें अपकृष्ट द्रव्यका प्रमाण होत सबको चूंकि उदयावलीके बाहिर गोपुच्छाकारसे देता है, अत एव प्रथम निषेक प्रमाणसे करनेपर डेढ़ गुणहानि प्रमाण प्रथम निषेक होते हैं । इसीलिये डेढ़ १ अ-काप्रमोः 'लद्ध ' इति पाठः । २ काप्रतौ 'जथा ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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