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________________ १, २, १, ३२.] वैयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त [१९६ सह विदियादिगुणहाणिदव्वं धरेदि, समयपबद्धमट्ठमभागोणं धरेदि ति उत्तं होदि । एवमेगरूवमेगरूवस्स संखेज्जदिभागो भागहारो गच्छमाणो केत्तियदव्वे वड्डिदे एगरूकमेगरुवस्स असंखेज्जदिभागो च भागहारो होदि त्ति उत्ते उच्चदे-गुणहाणि जहण्णपरित्तासंखज्जस्स अद्धण रूवाहिएण खंडिदूण तत्थ एगखंडं मोत्तूण बहुखंडाणि विसेसाहियाणि हेहदो उवरि चडिदूण बद्धदव्वस्स एगरूवमेगरूवं विसेसाहियजहण्णपरित्तासंखेज्जेण खंडिदेगखंडं च भागहारो होदि । तं जहा-|९| एदं विरलणं रूवाहियं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लन्भदि तो उवरिमविरलणम्मि| ८|कि लभामो ति |१७|१|२| पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए लद्धमेत्तियं होदि | १६ || एदाम्म | ८ | ।। दोसु रुवेसु सोहिदे एगरूवं रूवाहियजहण्णपरित्तासंखे- १७ जेण खंडिदेगरूवं च भागहारो | १ | होदि । एदेण समयपबद्धे भागे हिदे दुरूवाहियजहण्णपरित्तासंखेज्जेण समयपबद्धं |७| खंडिदूण तत्थ एगखंडं मोत्तूण बहुखंडाणि आगच्छंति । एतो पहाड उवरि जे बद्धा समयपबद्धा तेसिमसंखेज्जदिभागो चेव गट्ठो, सेसअसंखेज्जा भागा ण द्वितीयादिक गुणहानियोंके द्रव्यको धारण करता है। अभिप्राय यह कि वह आठवें भागसे हीन समयप्रबद्धको धारण करता है। [प्रथम गुणहानिका द्रव्य समयप्रषख, द्वितीयादिक गुणहानिका द्रव्य : समयप्रबद्ध, x + 1 =५।] शंका-इस प्रकार एक अंक और एक अंकका संख्यातवां आग भागहार जाता हुआ कितने द्रव्यकी वृद्धि होनेपर एक अंक और एक अंकका असंख्यात भाग भागहार होता है ? समाधान- ऐसा पूछनेपर उत्तर देते हैं कि जघन्य परीतासंख्यातके अर्ध भागमें एक मिलानेगर जो प्राप्त हो उससे गुणहानिको खण्डित कर उसमेंसे एक खण्डको छोड़कर विशेषाधिक बहुभाग प्रमाण नीचेसे ऊपर जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार एक अंक और एक अंकको विशेषाधिक जघन्य परीतासंख्यातसे खण्डित करने पर एक खण्ड भागहार होता है। वह इस प्रकारसे- एक अधिक इतना (2) विर. लन जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो उपरिम चिरलनमें यह कितनी पायी जावेगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर लन्ध इतना होता है-२४१ = 10। इसको दो अंकोंमेंसे कम कर देनेपर एक पूर्ण अंक और एक अधिक जघन्य परीतासंख्यातले खण्डित एक अंक भागहार होता है-२-१ = १ । इसका समयप्रबद्ध में भाग देनेपर दो अधिक जघन्य परीतासंख्यातसे समयप्रबद्धको खण्डित कर उसमेंसे एक खण्डको छोड़कर बहुखण्ड आते हैं। यहांसे लेकर आगे जो समयप्रबद्ध बांधे गये हैं उनका असंख्यातवां भाग ही नष्ट हुमा छ,वे. २५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org|
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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