SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९२] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, ३२. करिय दिण्णे एवं पडि तिभागपमाणं पावदि । तमुवरि दादूण समकरणं कायव्वं । रूवाहियतिणं रूवाणं जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो दोणं रूवाणं किं लभामो त्ति [४|१|२| पमाणेण फलगुणिदमिच्छमोवट्टिदे लद्धमद्धरूवं | १|| एदम्मि दोरूवेसु सोहिदे सुद्धसेसमेत्तियं होदि | १|| संपहि गुणहाणिअद्धं |२| विसेसाहियमुवरि चडिदूण बंधमाणस्स सति- [२] भागरूवं भागहारो होदि, रूवाहियदोस्वेहि दोरूवेसु ओवट्टिदेसु एगरूवबेतिभागस्स |२| दोसु रुवेसु परिहाणिदंसणादो |१|| पुणो गुणहाणितिण्णिचदुब्भागमुवरि , ३ | चडिदूण बंधमाणस्स एगरूवमेग- [३] स्वस्स सत्तमभागो च भागहारो होदि । तं जहा- सतिभागमेगरूवं विरलिय उवरि एगरूवधरिदं समखंडं करिय दिण्णे इच्छिददव्वं पावदि । एदं रूवाहियं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो दोणं रूवाणं किं लभामो त्ति |७|१|२| लद्धं | ६ | । एदाम्म दोसु रूवेसु सोहिदे सुद्धसेसमेदं |१|| तस्स |३|_|_| समय-|| पबद्धस्स गुणिदकम्मंसिओ' णेरइयचरिम- [७] समए पढमगुणहाणिदव्वस्स तीहि चदुब्भागेहि एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर एक अंकके प्रति तृतीय भागका प्रमाण प्राप्त होता है। उसको ऊपर देकर समीकरण करना चाहिये। एक अधिक तीन अंकोंके यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो दो अंकोंके प्रति वह कितनी पायी जावेगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर आधा अंक लब्ध होता है-२४ = ३। इसको दो अंकोंमेंसे कम करनेपर शेष इतना होता है-१३। अब गुणहानिके अर्ध भागसे विशेष अधिक आगे जाकर बांधे जानेवाले द्रव्यका भागहार तृतीय भाग सहित एक अंक होता है, क्योंकि, एक अधिक दो अंकोके द्वारा दो अंकोंको अपवर्तित करनेपर दो अंकॉम एक अंकके दो त्रिभाग(3) की हानि देखी जाती है- २-३ = १ । पुनः गुणहानिके तीन चतुर्थ भाग आगे जाकर बांधे जानेवाले द्रव्यका भागहार एक अंक और एक अंकका सातवां भाग होता है। वह इस प्रकारसे- तृतीय भाग सहित एक अंकका विरलन कर ऊपर एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर इच्छित द्रव्य प्राप्त होता है। एक अधिक इतना (3) जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो दो अंकोंके वह कितनी पायी जावेगी, [इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर ] लब्ध इतना होता है-x = । इसको दो अंकों से कम कर देनेपर शेष यह रहता है-२-5 = १७। उस समयप्रबद्धमेंसे गुणितकौशिक जीव नारक भवके अन्तिम समयमें प्रथम गुणहानि सम्बन्धी द्रव्यके तीन चतुर्थ भागोंके साथ ............ .१ प्रतिषु — समयपबद्धस्स गुणहाणियुणिदकम्मंसिओ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy