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________________ १७८] छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, २, ४, ३२. स्वधरिदेसु पविखविय समकरणं करिय परिहाणिरूवाणयणं वुच्चदे । तं जहा- रूवाहियमज्झिमविरलणमेत्तद्धाणं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो उवरिमविरलणाए किं लभामो त्ति | ४५१ | १ |२१| पमाणेण फलगुणिदिच्छमावट्टिय लद्धे उवरिमविरलणाए अवणिदे ७६ | | ५ | इच्छिददव्वभागहारो होदि १५७५। ४५१ | तिसमयाहियचत्तारिगुणहाणीओ उवरि चडिदूण बद्धदव्वभागहारो | १०५ । चदुसमयाहियचत्तारिगुणहाणीओ उवरि चडिदूण बद्धदव्वभागहारो ५०५। ३३ पंचसमयाहियचत्तारिगुणहाणीओ उवरि चडिदूण बद्धदव्व- १८१ भागहारो ३१५|| छसमयाहियचत्तारिगुणहाणीओ उवरि चडिदूण बद्धदव्वभागहारो। ५२५ । सत्त- ११९ समयाहियचत्तारिगुणहाणीओ उवरि चडिदृण बद्धदव्व- २१७ भागहारो ५२५/। एवं णेदव्वं जाव गुणहाणिअद्धाणं समत्तमिदि । पंचगुणहाणीओ चडिदूण बद्धदव्वभागहारो उच्चदे । तं जहा- १५ एदमद्धाणं रूवाहियं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो उवरिमविरलणाए १६ किं लभामो एक अंकके प्रति प्राप्त अंकोंमें मिलाकर समीकरण करके हीन अंकोंके लानेकी विधि बतलाते हैं । वह इस प्रकार है- एक अधिक मध्यम विरलन प्रमाण स्थान जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो उपरिम विरलनमें वह कितनी पायी जावेगी, इस प्रकार फल गुणित इच्छाको प्रमाणसे अपवर्तित कर लब्धको उपरिम विरलनले घटा देनेपर इच्छित द्रव्यका भागहार होता है-२१ x १४५१ तीन समय अधिक चार गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्य का भागहार ४५ चार समय अधिक चार गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार ४, पांच समय अधिक चार गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार १५; छह समय अधिक चार गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार ३१७ व सात समय अधिक चार गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार ५२५ है । इस प्रकार गुणहानिअध्वानके समाप्त होने तक ले जाना चाहिये। पांच गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार कहते हैं। वह इस प्रकार है-एक अधिक इतना अध्वान जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो उपरिम विरलनमें वह कितनी पायी जावेगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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