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________________ १, २, ४, ३२.] वेयणमहाहियारे वेयणदत्वविहाणे सामित्त (१७९ त्ति ३१ । १ २१ पमाणेण फलगुणिदमिच्छामोवट्टिय लद्धे उवरिमविरलणाए अवणिदे इच्छिद- १६५ दवभागहारो होदि ६३ । अधवा, पंचगुणहाणीओ चडिदो त्ति पंच रूवाणि विरलिय विगं करिय ३१ अण्णोण्णभत्थरासिणा रूवूणेण कम्महिदीए रूवूणण्णोण्णब्भत्थरासिम्हि भागे हिदे इच्छिदभागहारो होदि । एदेण समयपबद्ध भागे हिदे पंचगुणहाणीओ चडिदण बद्धदव्वं होदि । एवमणेण विहाणेण कम्मद्विदिदुचरिमगुणहाणि ति भागहारो परूवेदव्यो । संपधि दुचरिमगुणहाणिचरिमसमयम्मि बद्धदव्वभागहारो होदि २ । एदं विरलिय समयपबद्धं समखंड कादूण दिण्णे एवं पडि बिदियादि. ३१ गुणहाणिदव्वं पावदि । पुणो एगरूवासंखेज्जदिभागस्स चरिमगुणहाणिदव्वं पावदि । पुणो पढमगुणहाणिचरिमणिसेएण सह बिदियादिगुणहाणिदव्वागमणमिच्छिय चरिमणिसेगण बिदियादिगुणहाणिदव्वे भागे हिदे लद्धमेदं होदि ७७५ । एदं विरलिय उवरिमेगरूवधरिदं समखंडं करिय दिण्णे चरिमणिसेगो ७२ आगच्छदि । पुणो इमं उवरिमविरलणरूवधरिदेसु पक्खिविय समकरणे कीरमाणे परिहीणरूवाणं पमाणं उच्चदे । तं इच्छाको अपवर्तित करके लब्धको उपरिम विरलनमेसे घटा देने पर इच्छित द्रव्यका भागहार होता है-६' x १ + ई = , २६ = ५। ५६ - १६ = १५ है। च गुणहानियां आगे गया है, अतः पांच अंकोंका विरलन कर दुगुणा करके परस्पर गुणित करने पर जो प्राप्त हो उसमें से एक कम करके शेषका कर्मः स्थितिकी एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिमें भाग देनेपर इच्छित द्रब्यका भागहार होता है-[२x२x२x२x२ = ३२, ३२ -१ = ३१, ६४-१ = ६३, ६३ : ३१ %D] । इसका समयप्रबद्धमें भाग देनेपर पांच गुणहानियां जाकर बांधे गये द्रव्यका प्रमाण होता है [६३०० = ३१००]। इस प्रकार इस विधानसे कर्मस्थितिकी द्विचरम गुणहानि तक भागहारकी प्ररूपणा करना चाहिये । अब द्विचरम गुणहानिके चरम समयमें बांधे गये द्रव्यका जो २ भागहार है, उसका विरलन कर समयप्रबद्धको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति द्वितीयादिक गुणहानियोंका द्रव्य प्राप्त होता है [६३०० = ३१०० = (१६०० + ८००+४०० + २०० + १००)]। पुन: एक अंकके असंख्यातवें भागके प्रति अन्तिम गुणहानिका द्रव्य प्राप्त होता है । पुनः प्रथम गुण हानिके अन्तिम निषेकके साथ चूंकि द्वितीयादिक गुणहानियोंके द्रव्यका लाना अभीष्ट है, अतः अन्तिम निषेकका द्वितीयादिक गुणहानियोंके द्रव्यमें भाग देनेपर लब्ध यह होता है- ३१०० + २८८ = ५। इसका विरलन कर उपरिम एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर भन्तिम निषेक आता है [ ३१०० ४५ = २८८ ]। फिर इसको उपरिम विरलनके एक एक अंकके प्रति प्राप्त राशियों में मिलाकर समीकरण करनेपर हीन अंकोंका प्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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