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४, २, ४, ३२.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त
[१७७ मेत्तद्वाणम्मि केत्तियाणि परिहाणिरूवाणि लभामो त्ति । १३७।१ २१ । पमाणेण फलगुणिदमिच्छामोवट्टिय लद्धमुवरिमविरलणम्मि सोहिदे १२ । । ५ भागहारो होदि । ५२५ ।।
- पुण। चत्तारिगुणहाणीयो दुसमयाहियाओ उवरि चडिदूण बद्धभागहारो उच्चदे । तं जहा- धुवरासिदुभागं विरलिय उवारमएगरूवधारदं समखंडं करिय दिण्णे एवं पडि दो-दोचरिमणिसेगा पावेति । पुणो एत्थ एगविसेसागमणमिच्छिय हेट्ठा दुगुणं रूवाहियगुणहाणि विरलिय उवरिमेगरूवधरिदं समखंड करिय दादूण उवरिमविरलणएगरूवधरिदम्मि पक्खिविय समकरणे कदे जाणि परिहाणिरूवाणि तेसिमाणयण उच्चदे । तं जहाहेटिमविरलणं रूवाहियं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो उवरिमविरलणम्मि किं लब्भदि ति १९| १ | १२५ २ पमाणेण फलगुणिदीमच्छमावट्टिय मज्झिमविरलणाए अवणिदे इच्छिद- । २४ भागहारो होदि । ३७५ । एदेण उवरिमएगरूवधरिदे भागे हिदे जहासरूवेण दो णिसेया आगच्छंति ।। ७६ | पुणो एदे उवरिमएगेगजावेगी, इस प्रकार फलगुणित इच्छाको प्रमाणसे अपवर्तित कर लब्धको उपरिम विरलनमेंसे कम कर देने पर विवक्षित भागहार होता है-२६ ४१ १३० = ३५३;
पुनः दो समय अधिक चार गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये समयप्रबद्धका भागहार कहते हैं। वह इस प्रकार है- ध्रुवशिके द्वितीय भागका विरलन कर उपरिम विरलनके एक अंके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर एक अंकके प्रति दो दो चरम निषेक प्राप्त होते हैं [१५०० - १२.५ = २८८ ]। पुनः यहां चूंकि एक विशेषका लाना अभीष्ट है, अत एव नीचे एक अधिक गुणहानिके दूने का विरलन कर उपरिम विरलनके एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देकर उपरिम विरलनके एक अंक के प्रति प्राप्त द्रव्यमें मिलाकर समीकरण करनेपर जो हीन अंक हैं उनके लानेकी विधि कहते हैं। वह इस प्रकार है- एक अधिक अधस्तन विरल न जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो उपरिम विरलनमें वह कितनी पायी जावेगी. इस प्रकार फलगुणित इच्छाको प्रमाणसे अपवर्तित करके लब्धको मध्यम विरलन मैले घटा देनेपर इच्छित भागदार होता है-१२५४१ * १९ = १२५, १३२.५ - ४२५ = २.२५६ ] = ३७०५ । इसका उपरिम एक अंकके प्रति प्राप्त राशिमें भाग देने पर यथास्वरूपसे दो निषेक आते हैं [ ( १५०० ३७७५ ) = ( १५००.४७६)= ३०४ = (१४४+१६०)]। फिर इनको उपरिम एक
१ प्रतिपु ' . मुवर' इति पाठः । २ ताप्रतिपाठोध्यम् । अ-का प्रत्योः । १९ | १) १७५ इति पाठः। ३ का-ताप्रत्योः | ३७७ / इति पाठः।
| २४ छ.वे. २३.
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