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१७६ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ४, ३२. | १५ | १ | ९ । पमाणेण फलगुणिदमिच्छामोवट्टिय लढे अवणिदे अप्पिददव्वभागहारो | ८ । होदि २१ । अधवा, चत्तारिगुणहाणीओ चडिदाओ त्ति चत्तारि रूवाणि विरलिय विगं करिय । ५ अण्णोण्णब्भत्थरसिणा रूवूणेण रूवूणण्णोण्णब्भत्थरासिमावट्टिदे भागहारो होदि २१ । एदेण समयपबद्धे भागे हिदे चत्तारिगुणहाणीओ चडिदूप बद्धदव्वसंचओ| ५ | होदि १५००। ।
पुणो समयाहियचत्तारिगुणहाणीयो चडिय बद्धसमयपबद्धभागहारो रूवूणण्णोण्णब्भत्थरासिस्स पण्णारसभागो किंचूणो होदि । तं जहा- पुत्रभागहारं विरलेदूग समयपबद्धं समखंडं करिय दिण्णे रुवं पडि पुव्वं भणिददव्वं होदि । पुणो एत्थ एगरूवधरिदे १५०० | पंचचरिमगुणहाणिचरिमणिसेगेण १४४ भागे हिदे लद्धं धुवरासी होदि । १२५ । एदेण समकरणे कीरमाणे णट्ठरूवपमाणं उच्चदे । तं जहा- रूवाहिय- १२ | धुवरासिमेतद्धाणं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो उवरिमविरलण
फलगुणित इच्छाको प्रमाणसे अपवर्तित करके लब्धको एक कम अन्योन्याभ्यस्त गशिके सप्तम भागमैसे घटा देनेपर विवक्षित द्रव्यका भागहार होता है- (६४ - १) *७ = ९, ९४ १ ५ = १६, ९ - १६ = २६ । अथवा, चार गुणहानियां आगे गये है, अतः चार अंकोंका विरलन करके दुगुणा करे । पश्चात् उन्हें परस्पर गुणित करनेसे प्राप्त हुई राशिमेंसे एक कम करके शेषका एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिमें भाग देनेपर उक्त भागहार होता है-- 3 x x x 3 = १६, १६ - १ = १५, ६४ - १ = ६३; ६३ : १५ = २५। इसका समय प्रबद्ध में भाग देनेपर चार गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका संचय होता है-६३०० : २६ = १५०० ।
पुनः एक समय अधिक चार गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये समयप्रबद्धका भागहार एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिके पन्द्रहवें भागसे कुछ कम होता है। वह इस प्रकारसे - पूर्व भागहारका विरलन कर समयप्रबद्धको समखण्ड करके देनेपर एक अंकके प्रति पूर्वोक्त द्रव्य आता है। अब यहां एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यमें पंचचरम गुणहानिके चरम निषकका भाग देनेपर जो लब्ध हो वह ध्रुवगशि स्वरूप होता है- १५०० १४४ = २३ । इससे समीकरण करनेपर नष्ट अंकोंका प्रमाण कहते हैं। वह इस प्रकार है- एक आधिक ध्रुव राशि प्रमाण स्थान जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो उपरिम विरलन प्रमाण स्थानोंमें वह कितनी पायी
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१ ताप्रतौ २५| 3 | ९ | इति पाठः ।
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