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________________ ४ २, ४, ३२.] वेयणमहाहियारे वेयणदम्वविहाणे सामित्तं [१७५ लब्भदि त्ति २१३१९। पमाणेण फलगुणिदमिच्छमोवट्टिय लद्धे उवरिमविरलणाए अवणिदे ३८ अप्पिदभागहारो होदि । १५७५ ।। एदेण समयपबद्धे भागे हिदे अप्पिददव्वमागच्छदि ८५२ । २१३ । धुवरासितिभाग चदुब्भागादि मज्झिमविरलणं च णादण उवरि सव्वत्थ वत्तव्वं । णवरि तिसमयाहियतिण्णिगुणहाणीओ उवरि चडिय बद्धदव्वभागहारसंदिट्ठी ३१५ । चदुसमयाहियतिण्णिगुणहाणीओ उवरि चडिदूण बद्धदव्वभागहारो १५७५। ४७ पंचसमयाहियतिण्णिगुणहाणीओ उवरि चडिदण बद्धदव्व- २५९ भागहारो [ ३१५ । छट्ठसमयाहियतिण्णिगुणहाणीओ उवरि चडिदूण बद्धदव्वभागहारो] १५७५ । सत्त- ५७| समयाहियतिण्णिगुणहाणीओ उवरि चडिदूण बद्धदव्यभागहारो ३१३ | २२५ । एवमट्ट-णव-दससमयाहियाओ कमेण णेदव्वं जाव चउत्थगुणहाणि चडिदो ति । | ४९ तत्थ चरिमभागहारो उच्चदे । तं जहा- |७| एदं रूवाहियं गंतूण जदि रूवपरिहाणी लव्भदि तो रूवूणण्णोण्णब्भत्थरासिसत्तम- [८] भागम्मि किं लभामो त्ति ....... पायी जावेगी, इस प्रकार फलगुणित इच्छाको प्रमाणसे अपवर्तित करके लब्धको उपरिम विरलनमैसे घटा देनेपर विवक्षित भागहार होता है- ॐ + 3 = ९४१ = ३४३; ९ - ३४३ = १५७५। इसका समयप्रबद्धमें भाग देनेपर विवक्षित द्रव्य आता है- ६३०० : ३१ = ८५२।। | ছড। ३१५ ध्रुवराशि के तृतीय भाग व चतुर्थ भाग आदि तथा मध्यम विरलन राशिको जानकर आगे सर्वत्र प्ररूपणा करना चाहिये । विशेष इतना है कि तीन समय अधिक तीन गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यके भागहारकी संदृष्टि है। चार समय अधिक तीन गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार ३५, पांच समय अधिक तीन गणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहा छह समय अधिक तीन गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार ] और सात समय अधिक तीन गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार ११. है। इसी प्रकार आठ, नौ और दस समय आदिकी अधिकताके क्रमसे चतुर्थ गुणहानि प्राप्त होने तक ले जाना चाहिये। उनमें अन्तिम भागहार को कहते हैं। वह इस प्रकार है- एक अधिक इतना (३) जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो कम अन्योन्याभ्यस्त राशिके सातवें भागमें वह कितनी पायी जावेगी, इस प्रकार ............ १ ताप्रतौ २१३ इत्येतस्स स्थाने ३१३ इति पाठः । २ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-का ताप्रतिषु५५७५/ इति पाठः । २५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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