SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४, २, ४, ३२. ] dr महाहियारे वैयणदव्वविहाणे सामित्तं [ १७१ लामो त्ति |२८|१|२१| पमाणेण फलगुणिदमिच्छामोवट्टिय लद्धे उवरिमविरलणार सोहिदे पयदसंचयभागहारो होदि (७५) | एदेण समयपबद्धे भागे हिदे पयददव्वमागच्छदि | ३३६ | | ४ पुणो दुसया हिय दोगुणहाणीओ चडिय बद्धदव्वभागहारे आणिज्जमाणे ध्रुवरासिदुभागं विरलिय उवरिमविरलणे गरुवधरिदं समखंड करिय दिण्णे दो-दोचरिमणिसेया होणेगेरूवस्सुवरि पावेंति । एत्थेगचरिमणिसेगस्सुवरि एगविसेसमिच्छामो त्ति बिदियविरलणाए वाहियगुणहाणिं दुगुणं विरलेदूण एगरूवधरिदं समखंड करिय दिण्णे एगेगगो वुच्छविसेसो पावदि । एत्थ वि पुव्वं व समकरणे कीरमाणे जाणि निराधाररूवाणि तेसिमाणयणं वुच्चदे - रूवाहियगुणहाणिं दुगुण-रूवाहियं गंतून जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो मज्झिमविरलणार किं लभामो त्ति | १९ | १ | २५ पमाणेण फलगुणिदमिच्छामोवट्टिदे परिहाणिरूवाणि लब्भंति । पुणो तेसु मज्झिम- विरलणाए अवणिदेसु भागहारो होदि ७५ । पुणो रूवाहियमज्झिमविरलणमेत्तद्धाणं गंतूण जदि एगरूवावणयणं लब्भदि १९ हानि पायी जावेगी, इस प्रकार प्रमाण राशिका फलगुणित इच्छा राशिमें भाग देनेपर जो लब्ध हो उसे ऊपर की विरलन राशिमेंसे कम कर देनेपर प्रकृत संचयका भागहार होता है - २१ × १ ÷ = २१ = मै; मैं = | इसका समयप्रबद्ध में भाग देने पर प्रकृत द्रव्य आता है— ६३०० ÷ ७५ = ३३६ । पुनः दो समय अधिक दो गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार निकालने में ध्रुव राशिके द्वितीय भागका विरलन करके उपरम विरलन राशिके एक अंकके प्रति प्राप्त राशिको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके ऊपर दो दो अन्तिम निषेक होकर प्राप्त होते हैं [ ३०० : ५ = ७२ = ३६ x २ ] । यहां चूंकि एक अन्तिम निषेकके ऊपर एक विशेषकी इच्छा है, अतः द्वितीय विरलन राशिके नीचे एक अधिक दूनी गुणद्दानिका { ( ८ + १ ) = ९ × २ = १८} विरलन करके एक अंक के प्रति प्राप्त प्रमाणको समखण्ड करके देने पर एक एक गोपुच्छविशेष प्राप्त होता है [ ७२ ÷ १८ = ४ ] | यहांपर भी पहलेके ही समान समीकरण करनेपर जो निराधार अंक हैं उनके लाने की प्रक्रिया बतलाते हैं-- एक अधिक गुणहानिको दुगुणा करके उसमें एक अंक और मिलानेपर जो प्राप्त हो उतने [ ८ + १x२ + १ = १९] स्थान जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो मध्यम विरलन राशिमें वह कितनी पायी जावेगी, इस प्रकार फलगुणित इच्छा राशिको प्रमाण राशिसे अपवर्तित करनेपर हानिप्राप्त अंक पाये जाते हैं । उनको मध्यम विरलन राशिमेंसे कम कर देनेपर भागहारका प्रमाण होता है - × १ ÷ १९ = 2238 = 241 फिर एक अधिक मध्यम विरलन राशि प्रमाण स्थान जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो उपरिम विरलनमें वह कितनी पायी जावेगी, इस प्रकार फल राशिसे Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy