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________________ १७२) छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, ३२. तो उवरिमविरलणाए किं लभामो ति | ९१ | १ | २१ पमाणेण फलगुणिदमिच्छमोवट्टिय लद्धे उवरिमविरलणाए सोहिदे । १९ । पयददव्वभागहारो होदि । १५७५ ।। एदेण समयपबद्धे भागे हिदे इच्छिददव्वमागच्छदि | ३७६|| ____पुणो तिसमयाहियदोगुणहाणीओ उवरि चडिदूण बद्धदवभागहारो १०५ चदुसमयाहियदोगुणहाणीओ उवरि चडिदूण बद्धदव्यभागहारो ५२५) पंचसमया- ७ हियदोगुणहाणीओ उवरि चडिदूण बद्धदव्यभागहारो | ३१५ । ३९ छसमयाहियदोगुणहाणीओ उवरि चडिदूण बद्धदव्वभागहारो | ५२५ २६ ( सत्तसमयाहियदोगुणहाणीओ उवरि चडिदृण बद्धदव्वभागहारा ५२५ ।। ४८ | एवमट्ट-णव-दसादिसमयाहियदोगुणहाणीओ उरि चडिदूण बद्धदव्य-| ५३ भागहारो वत्तव्यो । तिण्णिगुणहाणीओ चडिदूण बद्धदव्यभागहारे भण्णमाणे ३ एदं रूवाहियमद्धाणं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो रूवूणण्णोण्णब्भत्थ-४ | रासितिभागम्मि किं लभामो त्ति ७१ ।२१ पमाणेण फलगुणिदमिच्छामावट्टिय लद्धं उवरिमविरलणाए सोहिदे इच्छिददव्व-४| भागहारो होदि । अधवा, कम्मट्ठिदिआदिसमयप्पहुडि तिण्णिगुणहाणीओ चडिय बद्धदव्वभागहारामिच्छामो त्ति तिण्णिगुणहाणिसलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोगुणित इच्छा राशिको प्रमाण राशिसे अपवर्तित करके लब्धको उपरिम विरलन राशिमेंसे कम कर देने पर प्रकृत द्रव्यका भागहार होता है - १५ + 1 = ; २१ x १ ४ = १, २१ = १३४४, १४ - ११ = १५४५ । इसका समयप्रबद्ध में भाग देनेपर इच्छित द्रव्य आता है- ६३०० १५५५ = ३७६।। पनः तीन समय अधिक दो गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार ०५चार समय अधिक दो गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार ५२१: पांच समय अधिक दो गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार २५; छह समय अधिक दो गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार ५२५; और सात समय अधिक दो गुणहानियां आगे जाकर बांधे ग भागहार ५२५ है । इसी प्रकार आठ, नौ और दस आदि समयोंसे अधिक दो गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यके भागहारकी प्ररूपणा करना चाहिये।। तीन गुणहानियां जाकर बांधे गये द्रव्यके भागहारकी प्ररूपणामें एक अधिक तना (३) स्थान जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिके तृतीय भागमें वह कितनी पायी जावेगी, इस प्रकार फलगुणित इच्छाको प्रमाणसे अपवर्तित करके लब्धको उपरिम विरलन राशिमेंसे घटा देनेपर इच्छित द्रव्यका भागहार होता है-२१x१४ = १२, २१-१२ =९। अथवा, कर्मस्थितिके प्रथम समयसे लेकर तीन गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार चूंकि अभीष्ट है, अत एव तीन गुणहानिशलाकाओंका विरलन करके दुगुणा कर परस्पर १ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-का-ताप्रति । ५२५ | इति पाठः । ................... ५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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