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१, २, ४, ३२. वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त
[१६५ रूवेहि खंडिय दुगुणियभागहारेणब्महियलद्धमत्तखंडाणि' रूवं पडि पावेंति । एदं वग्गसलागबेत्तिभागाणमुवरि पक्खित्ते भागहारो होदि । कम्महिदिभागहारो केत्तियमद्धाणं चीडदूण बद्धदव्वस्स भागहारो होदि त्ति वुत्ते कम्मट्ठिदिपलिदोवमसलागाहि पलिदोवमवग्गसलागाणं बेत्तिभागे गुणिय गुणहाणिमोवट्टिय लद्धम्मि पक्खेवरूवेसु अवणिदे चडिदद्धाणं होदि । तदवणयणटुं भागहारम्मि किंचूणेगरूवद्धपक्खेवो पुव्वं व कायवो।
संपधि पढमरूवुप्पण्णद्धाणं किं बहुअं, जम्हि अद्धाणे पलिदोवमं भागहारो जादो किं तमद्धाणं बहुगमिदि उत्ते उच्चद- रूवुप्पण्णद्धाणादो असंखेज्जपलिदोवमबिदियवग्गमूलपमाणादो पलिदोवमभागहारद्धाणमसंखेज्जगुणं, असंखेज्जपलिदोवमपढमवग्गमूलपमाणत्तादो । णाणावरणादणं पुण पलिदोवमभागहारद्धाणादों रूवुप्पण्णद्धाणमसंखेज्जगुणं, असंखेज्जबिदियवग्गमूलत्तणेण दोण्णमद्धाणाणं भेदाभावे वि सांतर-णिरंतरवग्गट्ठाणगुणगारेण कयभेदत्तादो । एदेण कमेण गुणहाणीए अणवहिदभागहारो जहण्णपरित्तासंखेज्जमेत्तो जादो। ताधे पक्खेवरूवाणं किं पमाणं ? दुगुणेण जहण्णपरित्ताअलग करने पर शेष अर्ध रूपको अपवर्तन रूपोंसे खण्डित करके दुगुणे भागहारसे अधिक लब्ध मात्र खण्ड प्रत्येक अंकके प्रति प्राप्त होते हैं। इसका वर्गशलाकाओंके दो त्रिभागोंके ऊपर प्रक्षेप करनेपर भागहार होता है । कर्मस्थितिका भागहार कितना अध्वान जाकर बांधे गये द्रव्य का भागहार होता है, ऐसा पूछनेपर उत्तर देते हैं कि कर्मस्थितिकी पल्योपमशलाकाओंसे पल्योपमकी वर्गशलाकाओंके दो त्रिभागोंको गुणित करके गुणहानिको अपवर्तित कर लब्धमेंसे प्रक्षेप रूपोंको कम कर देनेपर आगेका विवक्षित अध्वान होता है । उसको अलग करनेके लिये भागहारमें कुछ कम एक रूपके अर्ध भागका प्रक्षेप पहिलेके ही समान करना चाहिये।
अब प्रथम रूपोत्पन्न अध्वान बहुत है, अथवा जिस अध्यानमें पल्योपम भागहार होता है वह अचान क्या बहुत है ? ऐसा पूछनेपर उत्तर देते हैं- असंख्यात पल्योपम द्वितीय वर्गमूल के बराबर रूपोत्पन्न अध्वानकी अपेक्षा पल्योपम भारहारका अध्वान असंख्यातगुणा है, क्योंकि, वह असंख्यात पल्योपमोके प्रथम वर्गमूलके बराबर है। परन्तु ज्ञानावरणादिकोका रूपोत्पन्न अध्वान पल्योपमभागहारके अध्वानसे असंख्यातगुणा है, क्योंकि, असंख्यात द्वितीय वर्गमूल स्वरूपसे दोनों अध्वानों में कोई भेद न होने पर भी सान्तर-निरन्तर वर्गस्थानोंके गुणकारसे उनमें भेद किया गया है। इस क्रमसे गुणहानिका अनवस्थित भागहार जघन्य परीतासंख्यातके बराबर हो जाता है।
शंका-सब प्रक्षेप रूपोंका प्रमाण कितना होता है ?
समाधान-जघन्य परीतासंख्यातके वर्गको दूना करके उसका गुणहानिअध्यानमें भाग देनेपर जो लब्ध हो उतने मात्र प्रक्षेप रूप होते हैं।
१ प्रतिषु 'अद्ध मेतखंडाणि' इति पाठः। २ ताप्रती · भागहाराणि दो-' इति पाठः ।
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