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________________ १६४] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४ २, ४, ३२. त्तिभागाण उवरि पुविल्लकिंचूणद्धरूवं पक्खित्ते भागहारो होदि । एवं पक्खित्ते रूवाहियपक्खेवरूवेहि गुणिदकिंचूणद्धरूवं पविसदि । तं ताव पविट्ठअभावदव्वं पच्छा अवणेदव्वं । रूवाहियपक्खेवरूवेसु रूवं अवणिदे भागहारमेत्तं ओसरदि । सेसपक्खेवरूवेहि भागहार गुणिदे लद्धस्सद्धं होदि । हेडिमछेदभूदलद्धं विरलिय लद्धस्सद्धं समखंडं कादूण दिण्णे अद्धद्धरूवं पावदि । पुणो अवणिदभागहारमेत्तरूवाणि वि समखंड कादण दिण्णे लद्वैण भागहारं खंडेदूण एगेगं खंडं पावदि। पुणो अद्धरूवेण सह सरिसछेद कादूण मेलाविदे हेट्ठा उवारं च दुगुणलद्धं दुगुणभागहारेणाहियलद्धं च होदूण रूवं पडि चढदि । पुणो एदेसु सवरूवधरिदेसु पुवपविट्ठअभावदव्वं केत्तियमिदि भणदे हेट्ठा दुगुणोवट्टणरूवाणि उवरि रूवाहियपक्खेवरूवाणि दुगुणभागहोरणब्भहियलद्धं च गुणगार-गुणिज्जमाणसरूवेण द्विदं एदं सव्वरूवधरिदेसु अवणिज्जमाणं होदि । एदै चेव लःण खंडिदे एगेगरूवधरिदस्सुवरि अवणिज्जमाणं होदि । पुणो एगेगरूवधरिदं सरिसछेदं कीरमाणे ओवट्टणरूवेहि हेट्टवरि गुणिय रूवाहियपक्खेवाणि अवणिदे पविट्ठअभावदव्यं फिट्टदि । अवणिदसेसं पि ओवट्टिज्जमाणे हेट्ठिम-उवरिम-उवरिमलद्धाणि अवणिदे सेस अद्धरूवं ओवट्टण पूर्वोक्त कुछ कम अर्ध रूपका प्रक्षेप करने पर भागहार होता । इस प्रकारसे प्रक्षेप करनेपर एक अधिक प्रक्षेप रूपोंसे गुणित कुछ कम अर्ध रूप प्रविष्ट होता है। उस प्रविष्ट अभाव द्रव्यको पीछ कम करना चाहिये । एक अधिक प्रक्षेप रूपोंमेंसे एक अंकको कम करनेपर भागहार मात्र कम होता है। शेष प्रक्षेप रूपोंसे भागहारको गुणित करनेपर लब्धका आधा होता है। अधस्तन छेदभूत लब्धका विरलन करके लब्धके अर्ध भागको समखण्ड करके देनेपर अर्ध अर्ध रूप प्राप्त होता है। पश्चात कम किये गये भागहार प्रमाण रूपोंको भी समखण्ड करके देनेपर लब्धसे भागहारको खण्डित कर एक एक खण्ड प्राप्त होता है । फिर अर्ध रूपके साथ समच्छेद करके मिलानेपर नीचे व ऊपर दुगुणा लब्ध और दुगुणे भागहारसे अधिक लब्ध होकर रूपके प्रति स्थित होता है । अब इन समस्त रूपधरित राशियों में पूर्व प्रविष्ट अभाव द्रव्य कितना है, ऐसा पूछे जाने पर उत्तर देते हैं कि नीचे दुगुणे अपवर्तन रूप, ऊपर एक अधिक प्रक्षेप रूप और गुणकार व गुण्य स्वरूपसे स्थित एवं दुगुणे भागहारसे अधिक लब्ध; यह सब रूपधरितोंमें अपनीयमान द्रव्य है। इसको ही लब्धसे खण्डित करने पर एक एक रूपधरित राशिके ऊपर अपनीयमान द्रव्य होता है। पुनः एक एक रूपधरितको समच्छेद करते समय अपवर्तन रूपोंसे नीचे व ऊपर गुणित करके एक अधिक प्रक्षेपोको कम करनेपर प्रविष्ट अभाव द्रव्य फिट जाता है। कम करनेसे शेष रहे द्रव्यका भी अपवर्तन करते समय अधस्तन व उपरिम-उपरिम लब्धोंको १ ताप्रतिपाठोऽयम् । अ-काप्रत्योः ‘परिसदि' इति पाठः। २ अप्रतौ ' एवं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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