SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४, २, ४, ३२.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त दादूण किंचूणद्धरूवं दरिसेयव्वं । एदं भागहारम्हि अवणिदे अवणिदसेस वग्गसलागाणं बेत्तिभागा होति । एदेहि गुणहाणिमोवट्टिदे रूवाहियपक्खेवरूवसहिदलद्धमागच्छदि । अधवा किंचूणद्धरूवं एवं वा आणेदव्वं । तं जहा- वग्गसलागाणं बेत्तिभागे विरलिय गुणहाणि समखंडं कादूण दिण्ण रूवं पडि ओवट्टणरूवपमाणं पावदि । पुणो एत्थ रूवाहियपक्खेवाणं अवणयणं' कीरमाणे भागहारवड्डी कीरदे । तं जहातेहि चेव रूवाहियपक्खेवरूवेहि एगरूवधरिदमोवट्टिय हेट्ठा विरलिय उवरिमएगरूवधारदं समखंड कादूण दिण्णे रूवाहियपक्खेवरूवाणि पावेंति । पुणो एदेण पमाणेण उवरिमसव्वरूवधरिदेसु अवणिदे अवणिदसेसं लद्धपमाण होदि । पुणो अवणिददन्वं सेसपमाणेण कीरमाणे रूवूणहेट्टिमविरलणमेत्ताण जदि एक्का पक्खेवसलागो लब्भदि तो वग्गसलागवेत्तिभागाणं किं लभामा त्ति स्वर्ण कीरमाणे छेद मेत्तमवणेदव्वं । अवणिदे हेट्ठा उवरिं च रूवाहियपक्खेवरूवाणि लद्धं च होदि । एदेण भागे हिदे हेडिमछेदो वग्गसलागवत्तिभागाणं गुणगारो होदि । एवं गुणिदे किमत्थुप्पणं ति ण णव्वदे। तेण वग्गसलाग पूर्वके समान देकर कुछ कम आधे रूपको दिखलाना चाहिये। इसको भागहारमेसे कम करनेपर शेष वर्गशलाकाओंके दो त्रिभाग होते हैं। इनसे गुणहानिको अपवर्तित करनेपर एक अधिक प्रक्षेप रूपों सहित लब्ध आता है । अथवा, कुछ कम अर्ध रूपको इस प्रकारसे लाना चाहिये । यथा- वर्गशलाकाओके दो त्रिभागोंका विरलन करके गुणहानिको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक अंकके प्रति अपवर्तन रूपोंका प्रमाण प्राप्त होता है। अब यहां एक अधिक प्रक्षेप रूपोंका अपनयन करने पर भागहारकी वृद्धि की जाती है । वह इस प्रकार है- एक अधिक उन्हीं प्रक्षेप रूपोंसे एक रूपधरित राशिको अपवर्तित करके नीचे बिरलित कर उपरिम एक रूपधरित राशिको समखण्ड करके देनेपर एक अधिक प्रक्षेप रूप प्राप्त होते है । पुन: इस प्रमाणसे ऊपरकी सब रूपोंपर रखी हुई राशियोंमेंसे कम करनेपर अपनयनसे शेष रहा लब्धका प्रमाण होता है। फिर कम किये गये द्रव्यको शेषके प्रमाणसे करनेपर एक कम अधस्तन विरलन मात्र उनके यदि एक प्रक्षेपशलाका प्राप्त होती है तो वर्गशलाकाओंके दो त्रिभागों में कितनी प्रक्षेपशलाकायें प्राप्त होगी, इस प्रकार रूपसे कम करते समय छेद मात्रको कम करना चाहिये। इस प्रकार कम करनेपर नीचे व ऊपर एक अधिक प्रक्षेप रूप व लब्ध होता है। इसका भाग देनेपर अधस्तन छेद धर्मशलाकाओंके दो त्रिभागोंका गुणकार होता है । इस प्रकारसे गुणित करनेपर यहां क्या उत्पन होता है, यह ज्ञात नहीं होता। इसलिये घर्गशलाकाओंके दो त्रिमार्गोंकि ऊपर . ... ताप्रतिपाठोऽयम् । अ-काप्रत्योः 'रूवाहिय पत्ते खेत्तरूवाणमवणयणं' इति पाठः। १ भ-कापत्योः 'एक्को पक्खेवसलागा', तापतौ ' एक्को पक्खेवसलागो' इति पाठ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy