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________________ छक्खंडागमे यणाखंड [१, २, ४, २२. किंचूणद्धरुवं वग्गसलागवेत्तिभागाणमुवरि पक्खित्ते लद्धागमण8 भागहारो होदिः ।। अधवा पलिदोवमवग्गसलागवेत्तिभागाणमुवरि केत्तिएण वि अधियं जादे भागहारो होदि । तं पुण. ताव एत्तियमिदि ण णव्वदे। तं पुण पच्छा जाणाविज्जदे । तं ताव वग्गसलागवेत्तिभागाणं उवार' पक्खिविय भागहारमिदि कप्पिऊण विरलिय समखंड कादूण दिण्णे एवं पडि लद्धपमाणं पावदि । पुणो एत्थ स्वाहियपक्खेवरूवाणि लद्धरुवेहि सह जहा एगभागहारेण गच्छंति तहा किरियं करिस्सामो । तं जहा- रूवाहियपक्खेवरूवेहि एगरूवधरिदं लद्धपमाणं भार्ग हरिय हेट्ठा विरलेदण एगरूवधरिदं समखंडं कादूण दिण्णे रूवं पडि रूवाहियपक्खेवरूवाणि पावेति । एदाणि उवरिमरूवधरिदेसु दादूण समकरणं कायव्वं । संपहि परिहीणरूवपमाणाणयणं उच्चदे । तं जहा- रूवाहियहेट्टिमविरलणमेत्तद्धाणं उरि गंतूण जदि एगा परिहाणिसलागा लन्मदि तो सयलउवरिमविरलणम्हि केत्तियाणि परिहाणिरूवाणि लभामो त्ति रूवाहियं कीरमाणे छेदमेत्तं पक्खिविदव्वं । पक्खित्ते उवरि ओवट्टणरूवाणि हेट्ठा स्वाहियपक्खेवरूवाणि एदेहि भागहारमोवट्टिदे हेहिमच्छेदो भागहारस्स गुणगारो होदि । पुणो ओवट्टणरूवाणि विरलिय भागहारगुणिदरूवाहियपक्खेवरूवाणि' पुवं व है नहीं, अत एव कुछ कम अर्ध रूपका वर्गशलाकाओंके दो त्रिभागोंके ऊपर प्रक्षेप करनेपर-लब्धको लानेके लिये भागहार होता है। - अथवा, पल्योपमकी वर्गशलाकाओंके दो त्रिभागोंके ऊपर कुछ प्रमाणसे अधिक होनेपर भागहार होता है । परन्तु वह इतना है, ऐसा नहीं जाना जाता है। उसे पीछे ज्ञात कराया जाता है। उसका वर्गशलाकाओंके दो त्रिभागोंके ऊपर प्रक्षेप करके भागहारकी कल्पना कर विरलित करके समखण्ड करके देनेपर रूपके प्रति लब्धका प्रमाण प्राप्त होता है। _ अब यहां एक अधिक प्रक्षेप रूप लब्ध रूपोंके साथ जिस प्रकार एक भागहारसे जाते हैं उस प्रकारकी क्रियाको करते हैं। वह इस प्रकार है- एक अधिक प्रक्षेप रूपोंसे एक रूपधरित लब्ध प्रमाण भागको अपहृत करके नीचे विरलित कर एक रूपधरित राशिको समखण्ड करके देने पर प्रत्येक अंकके प्रति एक अधिक प्रक्षेप रूप प्राप्त होते हैं। इनको उपरिम रूपधरित राशियोंपर देकर समकरण करना चाहिये । अब परिहीन रूपोंके लानेक विधानको कहते हैं। वह इस प्रकार है-एक अधिक अधस्तन घिरलन राशि प्रमाण अध्वान ऊपर जाकर यदि एक परिहानिशलाका प्राप्त होती है तो समस्त उपरिम विरलन राशिमें कितने परिहानि. रूप प्राप्त होंगे, इस प्रकार रूप आधिक करते समय छेद. मात्रका प्रक्षेप करना चाहिये। उक्त प्रकारसे प्रक्षेप करनेपर ऊपर अपवर्तन रूप व नीचे रूप अधिक प्रक्षेप रूप, इनसे भागहारको अपवर्तित करनेपर अधस्तन छेद भागहारका गुणकार होता है। फिर अपवर्तन रूपोंका विरलन करके भागहारसे गुणित रूप अधिक प्रक्षेप रूपोंको १ अ-काप्रत्योः 'सलागा- ' इति पाठः । २ अप्रतौ ' उवरिम ' इति पाठः । ३ प्रतिषु 'अद्ध-' इति पाठः । ४ तापतौ ' भागहारगुणियपक्खेवरूवाणि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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