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________________ ४, २, ४ ३२.) वैयणमहाहियारे वेयणदव्वाविहाणे सामित्त ।१३९ णाणागुणहाणिसलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्थरासिगुणिददिवड्डगुणहाणीओ विरलिय सव्वदव्वं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि चरिमगुणहाणिपढमणिसेगो होदि । भागहारसंदिट्ठी | ११७५ । पुणो तदणंतरबिदियणिसेगभागहारे भण्णमाणे पुव्वविरलगाए हेट्ठा णिसेगभागहार विरलिय पढमणिसेगं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि गोवुच्छविसेसो पावदि । एदेण पमाणेण उवरिमविरलणरूवधरिदेसु अवणिदे तमधियदव्वं होदि । एवं तप्पमाणेण करिय अधिगदव्वस्स विरलणरूवुप्पत्ती वुच् वदे । तं जहा - रूवूणणिसेगभागहारमेत्तविसेसेसु जदि एगा पक्खेवसलागा लब्भदि तो उवरिमविरलणमेत्तविसेसेसु किं लभामो ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए लढे तत्थेव पक्खिते भागहारो होदि | ६३०० ।। एवं णेदव्वं जाव चरिमणिसेओ त्ति । ......................................... कहा जाता है- एक कम नानागुणहानिशलाकाओंका विरलन करके दुगुणा कर जो अन्योन्याम्यस्त राशि उत्पन्न हो उससे गुणित डेढ़ गुणहानियोंका विरलन करके सब द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक एकके प्रति अन्तिम गुणहानिका प्रथम निषेक प्राप्त होता है । भागहाराष्ट १५७५ है। १२८ उदाहरण-एक कम नानागुणहानि ५; इनकी अन्योन्याभ्यस्त राशि ३२ , x१९१७ अन्तिम गुणहानिके प्रथम निषेकका भागहार । पुनः तदनन्तर द्वितीय निषेकके भागहारको कहते समय पूर्व विरलनके नचेि निषेकभागहारका बिरन करके प्रथम निषेकको समखण्ड करके देपर प्रत्येक एकके प्रति गोपुच्छविशेष प्राप्त होता है। इस प्रमाण ले उपरिम विरलनके प्रति प्राप्त द्रव्यमेंसे गोपुच्छविशेषों को कम करनेपर वह अधिक द्रव्य होता है । इसको उसके प्रमाणसे करके अधिक द्रव्यके विरलन रूगोंकी उत्पत्ति कहते है । यथा-एक कम निषेकभागहार मात्र विशेषों में यदि एक प्रक्षेपशलाका प्राप्त होती है तो उपरिम विरलन मात्र विशेषों में क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार फलराशिसे गुणित इच्छा राशिमें प्रमाण राशिका भाग देनेपर जो लब्ध हो उसको उसी पूर्व विरलन राशिमें मिला देनेपर भागहार होता है ५२०० । उदाहरण- एक कम निषेकभागहार १५, उपरिम विरलन १३००, ६३०० १५ ६३००६-४२० , ६३०० + १३० - ६७६० ६३०० अन्तिम गुण ८ हानिके द्वितीय निषेकका भागहार । इस प्रकार अन्तिम निषेक तक भागहारका क्रम ले जाना चाहिये। .......... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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