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२४० लग्नंटाग देयणाख
। ४,, ४, २२. संपधि चरिगणिसेयपमाणेण सव्वदा मंगुलस्स येदिभागमेतेणे काले अरहिरिज्जदि । तं जहा- चरिम गुणवाणिदवे चरिमाणसेयाम करे रावस्स असंखेन्जदिमागेग अहियरूवूणदिवगहाणनेत चरिमणि सेयः होते । तस्स संदिट्ठो !
संधि चरिमगुणहाणिदव्व पहुांडे सेनगुणहाणिदवाण दुगुप-बुगणकमेण गछीत जात्र पदमगुणहाणिदव्वं । १०० | २०० | १०० ८०० १६०० ! ३००० ति, भरिमगुणहाणिदव्ने रूवूणण्णोण्णमत्यरासिणा गुणिदे सव्वदव्वसमुप्पत्तोदो । रूवूणण्णाषणमत्थराति सम्वदने भागे हिदे परिममुणहाणिदव्वनागच्छदि । किंचूदिवड्वगुणहाणीए रूबगोषणभत्यरासिं गुणिय सम्वदव्व भागे हिदे चरिमपिसेगो आगच्छदि । कुदो ? निगुणादिवम्मि किंचूगदिवड्डगुणहाणिवेत्तचरिमणिसे गुवलंभादो । एदस्स संदिट्ठी । ६३०० ।। एसो भागहारो अंगु लस्स असंखेज्जनिभागो असंजाओ ओपिनि उस्मपिणीओ : जहा – जाणागुणहाणिसलागोवविदरूवूणण्णोण्णभत्थरासिं विरलिय रूवूणण्णोण्णभत्यससे चेव समखंड करिय दिग्णे रुवं पडि गाणागुणहाणिसलागामाणं पावदि । तत्थ एगरूवधरिदरासिणा
अब अन्तिम निषेक के प्रमाण से सब द्रव्य अंगुके असंख्यात भाग मात्र कालसे अपह्रत होता है, यह बतलाते हैं । यथा- अन्तिम गुणहानिके द्रव्यको अन्तिम निषेकके प्रमाणसे करनेपर एकका असंख्यातवां भाग अधिक एक कम डेढ़ गुणहानि मात्र अन्तिम निषेक होते हैं । उसकी संदृष्टि--११५ ।
अब अन्तिम गुणहानिक द्रव्यसं लेकर शेष गुणहानियों का द्रव्य प्रथम गुणहानिके द्रव्यके प्राप्त होने तक दूना दूना होता जाता है-- १००, २००, ४००, ८००, १६००, ३२००, क्योंकि, अन्तिम गुणहानिके द्रव्यको एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिसे गुपित करनेपर सब द्रव्यकी उत्पत्ति होती है । एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिका सब द्रव्य में भाग देनेपर अन्तिम गुणहानिका द्रव्य आता है। कुछ कम डेढ़ गुणहानिसे एक कम् अन्योन्याभ्यस्त राशिको गुणित कर सब द्रव्यमें माग देनेपर अन्तिम निषेक आता है, क्योंकि, अन्तिम गुणहानिके द्रव्यमें कुछ कम डेढ़ गुणहानि मात्र अन्तिम निषेक पाये जाते हैं । इसकी संदृष्टि ५२००। यह मागहार अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है जो असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी मात्र है। यथा- नानागुणहानिशलाकाओंसे भाजित एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिका विरलन करके एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिको ही समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक एकके प्रति नानागुणहानियोंकी शलाकाओंका प्रमाण प्राप्त होता है। उनमेंसे एक अंकेके प्रति प्राप्त राशिसे डेढ़ गुणहानिको गुणित करने पर डेढ़ कर्म
१ प्रतिषु ' - भागहारमेतेण' इति पाठः ।
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