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________________ ११२ । छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, ३२. विससाणं जदि एगो तदियणिसेगो लब्भदि तो दिवड्डगुणहाणिमेत्तदोहोविससाणं किं लभामो त्ति भाग घेत्तूण लद्धे पक्खित्ते तदियणिसेगभागहारो होदि | १५७५ । एवं णेदव्वं जाव पढ़मगुणहाणिचरिमणिसेओ त्ति । ___पुणो पुव्वविरलणं दुगुणं १५७५ | विरलिय सव्वदव्वं समखंड करिय दिण्णे बिदियगुणहाणिपढमणिसेगो होदि । सेसं जाणिदूण वत्तव्यं । तदियगुणहाणिपढमाणसेगभारहारो पुब्वभागहारादो चउग्गुणो | १५७५ । चउत्थगुणहाणिपढमणिपगभागहारो अगुणो होदि | १५७५ || पंचमगुणहाणिपढमणिसेगभागहारो पुवभागहारादो सोलसगुणो २५.५। एवमसंखेज्जगुणहाणीयो गंतूण चरिमगुणहाणिपढमणिसेयस्स भागहारो वुच्चदे- रूवूण ६४ निषेकभागहारके एक कम अर्व भाग मात्र विशेषांका यादे एक त॒नीय निषेक प्राप्त होता है तो डेढ़ गुणहानि मात्र दो दो विशेषोंका क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार भागको ग्रहण कर लब्धमें मिलानेपर तृतीय निषेकभागहार होता है ५७ । ११२ १५७५४६४७४६४ १५७५४६४ उदाहरण१२८ १२८ ७४६४१५८ १२४ + २२८ = १२० - ११५ तृतीय निषेकका भागहार । इस प्रकार प्रथम गुणहानिके अन्तिम निषकके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिये। पुनः पूर्व विरलनको दुगुणा (१५७५) कर विरलन करके सब द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर द्वितीय गुणहानिका प्रथम निक होता है। शेषका कथन जानकर करना वाहिये । तृतीय गुणहानिके प्रथम निषेक का भागहार पूर्व भागहारसे चौगुणा है १४ । उदाहरण - पूर्वभागहार १५६८, १५२८ - १५३५ । चतुर्थ गुणहानिके प्रथम निषेकका भागहार पूर्व भागहारसे आठगुणा है । पंचम गुणहानिके प्रथम निषेकका भागहार पूर्व भागहारसे सोलहगुणा है १५७५ । इस प्रकार असंख्यात गुणहानियां जाकर अन्तिम गुणहानिके प्रथम निषेकका भागहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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