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________________ १, २, ४, ३२.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं [ १२३ पढमगुणहाणिचरिमणिसेगो रूवूणगुणहाणिमेत्तगोवुच्छविसेसेहि ऊणो। तेण रूवूणगुणहाणिसंकलणमेत्तगोवुच्छविसेसा अहिया होति । एदेसिमेगादिएगुत्तरवड्डीए रूवूणगुणहाणिमेत्तद्धाणगदगोवुच्छविसेसाणमवणयणं कस्सामो। तं जहा- एदेसिं मूलग्गसमासे कदे रूवूणगुणहाणिअद्धमेत्ता पढमणिसगदुभागा होति । पुणो ते दो दो एक्कदो कदे एगरूवचदुभागेणूणगुणहाणिचदुब्भागमेत्तपढमणिसेगा होति । पुणो एदेसु पढमणिसेगेसु गुणहाणिमेत्तपढमणिसेगेहिंतो अवणिदेसु गुणहाणितिण्णिचदुब्भागमेत्तपढमणिसेया चदुब्भागेणब्भहिया चेटुंति, गुणहाणीए किंचूणगुणहाणिचदुब्भागानावादो । तेसिमेसा संदिट्ठी ठवेदव्वा । ५१२ । ५१२ । ५१२।५१२।५१२।५१२।१२८ । पढमगुणहाणिदव्वे पढमणिसेगपमाणण कदे एत्तियं होदि । सेसगुणहाणिदव्वे वि अप्पप्पणो [पढम] णिसेयपमाणेण कदे एवं चेव होदि । तम्मि मेलाविदे चरिमगुणहाणिदव्वेणूणं पढमगुणहाणिदत्वमेत' होदि । पुणो चरिमगुणहाणिदवे पक्खित्ते पढम प्रथम गुणहानिका अन्तिम निषेक एक कम गुणहानि प्रमाण गोपुच्छविशेषोंसे हीन है। इसलिये प्रत्येक गुणहानिमें एक कम गुणहानिके संकलन प्रमाण गोपुच्छविशेष अधिक होते हैं। अब एकादि एकोत्तर वृद्धि रूप इन एक कम गुणहानि प्रमाण स्थानगत गोपुच्छविशेषोंका अपनयन करते हैं । यथा- मूलसे लेकर अब तकके इन गोपुच्छविशेषोंका जोड़ करनेपर एक कम गुणहानिके आधे भाग प्रमाण जो प्रथम निषेक हैं उनके आधे भाग प्रमाण होते हैं (५१२ ४.२ = ८९६) । पुनः उन दो दो भागोंको इकट्ठा करने पर एक चौथाई कम गुणहानिके चतुर्थ भाग मात्र प्रथम निषेक होते हैं [५१२४-१ = ५१२ ४ (-१) = ८९६ ।। फिर इन प्रथम निषेकोंको गुणहानि प्रमाण प्रथम निषेकोमैसे कम करनेपर एक चतुर्थ भाग अधिक गुणहानिके तीन चतुर्थ भाग मात्र प्रथम निषेक शेष रहते हैं, क्योंकि, गुणहानिमें गुणहानिके कुछ कम एक चतुर्थ भागका अभाव है। उनकी यह संदृष्टि स्थापित करनी चाहिये- प्रथम गुण. हानिका द्रव्य ३२००, उसे प्रथम निषेकके प्रमाणसे विभाजित करनेपर वह इस शकलमें प्राप्त होता है-५१२, ५१२, ५१२, ५१२, ५१२,५१२, १२८। प्रथम गुणहानिके द्रव्यको प्रथम निषेकके प्रमाणसे करनेपर इतना होता है । .. शेष गुणहानियोंके द्रव्यको भी अपने अपने [प्रथम] निषेकके प्रमाणसे करनेपर इसी प्रकार ही होता है। उसको (सब गुणहानियों के द्रव्यको) मिलानेपर वह सब अन्तिम गुणहानिके द्रव्यसे हीन प्रथम गुणहानिका द्रव्य मात्र होता है (१६०० + ८५० + ४०० + २००+ १०० = ३१०० = ३२००-१००)। पुनः इसमें अन्तिम गुणहानिक द्रव्यको मिलानेपर प्रथम गुणहानिके द्रव्यके बराबर होता है। ३१०० + १०० = ३२०० प्रथम १ प्रतिषु ' -६व्वेण ण पदमगुणहाणिदव्वमेते' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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