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१, २, ४, ३२.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्यावहाणे सामित्तं
। ११७ तं तिविहं- जहण्णपदे उक्कस्सपदे जहण्णुक्कस्सपदे चेदि । तत्थ जहण्णुक्कस्सपदेसअप्पाबहुगे भण्णमाणे सव्वत्थोवं चरिमाए हिदीए पदेसग्गं [९J। चरिमे गुणहाणिट्ठाणंतरे पदेसग्गमसंखेज्जगुण १००। पढमाए ठिदीए पदेसग्गमसंखेज्जगुणं [५१२ । अपढमअचरिमगुणहाणिट्ठाणंतरे पदेसग्गमसंखेज्जगुणं त्ति भणिदं |५७७९ । संपधि एत्थ अप्पाबहुगे चरिमगुणहाणिदव्वस्सुवरि पढमणिसेगो असंखेज्जगुणो त्ति भाणदं । तत्थ चरिमगुणहाणिदव्वमसंखेज्जपलिदोवमपढमवग्गमूलपमाणचरिमणिसेगं । तस्स संदिट्ठी | ९ | १: ।। पढमणिसेगो पुण किंचूणण्णोण्णभत्थरासिमेत्तचरिमणिसेगो | ९ । ५१२ || असंखेज्जपलिदोवमपढमवग्गमूलमत्तदिवडगुणहाणीहिंतो किंचूणण्णोण्णब्भत्थरासिस्स असंखेज्जगुणत्तण्णहाणुववत्तीदो णव्वदे णाणागुणहाणिसलागाओ पढमवग्गमूलच्छेदणएहितो बहुगाओ त्ति । बहुगीओ होतीयो विसेसाहियाओ चेव, ण दुगुणाओ; अण्णोण्णब्भत्थरासिस्स पलिदोवमपमाणत्तप्पसंगादो । पलिदोवमवग्गसलागछेदणयमादि कादूण जाव पलिदोवमबिदियवग्गमूलच्छेदणयपज्जवसाणाओ
जो अल्पबहुत्व है वह तीन प्रकारका बतलाया है-जघन्य पद, उत्कृष्ट पद और जघन्यउत्कृष्ट पद । उनमेंसे जघन्य-उत्कृष्टप्रदेशअल्पबहुत्वका कथन करते समय “ अन्तिम स्थितिमें प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है ९। इससे अन्तिम गुणहानिस्थानान्तरमें प्रदेशात असंख्यातगुणा है १०० । इससे प्रथम स्थितिमें प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है ५१२ । इससे अप्रथम-अचरम गुणहानिस्थानान्तरमें प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है ५७७९" ऐसा कहा है । इस प्रकार इस अल्पबहुत्वमें अन्तिम गुणहानिके द्रव्यका निर्देश करके उससे प्रथम निषेकका द्रव्य असंख्यातगुणा है, ऐसा कहा है। उसमें अन्तिम गुणहानिका द्रव्य पल्यो. पमके असंख्यात प्रथम वर्गमूल प्रमाण अन्तिम निषेकोंका जितना द्रव्य हो उतना है। उसकी संदृष्टि - २x२ । और प्रथम निषेक कुछ कम अन्योन्याभ्यस्त राशि मात्र अन्तिम निषेकोंका जितना प्रमाण हो उतना है x ५१२ । पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलों प्रमाण डेढ़ गुणहानियोंसे चूंकि कुछ कम अन्योन्याभ्यस्त राशि असंख्यातगुणी अन्यथा बन नहीं सकती, अतः इसीसे जाना जाता है कि नाना गुणहानिशलाकायें पल्योपमके प्रथम वर्गमूलके अधच्छोसे बहुत है। बहुत होती हुई भी वे प्रथम वर्गमूलके अधेच्छदासे विशेष अधिक ही हैं, दुगुणी नहीं हैं; क्योंकि, उन्हें दूनी मान लेने पर अन्योन्याभ्यस्त राशिके पल्योपमके प्रमाण प्राप्त होनेका प्रसंग आता है । पल्योपमकी वर्गशलाकाओंके अर्धच्छेदसे लेकर पल्योपमके द्वितीय वर्गमूलके अर्धच्छेद पर्यन्त सब अर्धच्छेदोंकी शलाकाओंको
.१३१.
१ . अ. प. १३०७ सू. १०५. २ धं. अ. प.१३०९ सू. १३०. ३ ध. अ. प. १३०९ ४ घ. अ. प. १३०९ सू. १३२. ५ध. अ. प. १३०९ सू. १३३.
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