________________
११६] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, २, ४, ३२. परूवणा पमाणमप्पाबहुगं चेदि । अत्थि एगेगपदेसगुणहाणिट्ठाणंतराणि, णाणापदेसगुणहाणिसलागाओ च अस्थि । परूवणा गदा ।
एगपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरमसंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । णाणापदेसदुगुणहाणिट्ठाणंतरसलागाओ पलिदोवमपढमवग्गमूलस्स असंखेज्जदिभागो पलिदोवमछेदणएहितो थोवाओ पलिदोवमपढमवग्गमूलच्छेदणएहिंतो पुण बहुआओ। कधमेदं णव्वदे १ णाणागुणहाणिसलागाओ विरलिय बिग करिय अण्णोण्णब्भत्थे कदे असंखेज्जपलिदोवमपढमवग्गमूलसमुप्पत्तीदो। एदं पि कुदो णव्वदे ? बाहिरवग्गणाए पदेसविरइयसुत्तादो। तं जहातत्थ पदेसविरइयअत्थाहियारे छअणिओगद्दाराणि - जहणिया अग्गद्विदी, अग्गट्ठिदिविसेसो, अग्गहिदिट्ठाणाणि, उक्कस्सिया अग्गहिदी, भागाभागं, अप्पाबहुगं चेदि । तत्थ जमप्पाबहुअं
हो जाता है, इसका विचार किया गया है। प्रत्येक गुणहानिमें पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण निषेक होते हैं, इसलिये इतने स्थान जानेपर दूनी हानि हो जाती है। यह बतलाना उक्त कथनका तात्पर्य है।।
___ यहां तीन अनुयोगद्वार हैं-प्ररूपणा, प्रमाण और अल्पबहुत्व । एक एक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तर हैं और नानाप्रदेशगुणहानिशलाकायें भी है । प्ररूपणा समाप्त हुई।
एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर पल्योपमके असंख्यात प्रथमवर्गमूल प्रमाण है। नानाप्रदेशद्विगुणहानिस्थानान्तरशलाकायें पल्योपमके प्रथम वर्गमूलके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं जो पल्योपमके अर्धच्छेदोंसे तो स्तोक हैं, पर पल्योपमके प्रथम वर्गमूलके भर्धच्छेदोंसे बहुत हैं।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान--क्योंकि, नानागुणहानिशलाकाओंका विरलन करके दुगुणित करनेके पश्चात् उनको परस्पर गुणित करनेपर पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलोंकी उत्पत्ति होती है।
शंका-यह भी किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-बाह्य वर्गणामें प्रदेशविरचित सूत्रसे यह जाना जाता है । यथा-वहां प्रदेशविरचित अर्थाधिकारमें छह अनुयोगद्वार बतलाये हैं- जघन्य अग्रस्थिति, अग्रस्थितिविशेष, अग्रस्थितिस्थान, उत्कृष्ट अग्रस्थिति, भागाभाग और अल्पबहुत्व । उनमें
१ काप्रतौ ' णाणापदेसगुणहाणि ' इति पाठः।
२ ध. अ. प. १३०५. ८५.
Jain Education International
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org