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________________ छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ४, ३२. ११८ ] सव्वद्धछेदणयसलागाओ मेलाविय पलिदोवमपढमवग्गमूलच्छेदणएस पक्खित्ते णाणागुणहाणि - सलागाणं पमाणं होदि । कधमेदासिं मेलावणं कीरदे ? १लिदोवमवग्गसलागपमाणवग्गमार्दि कादूण जाव पलिदोवमविदियवग्गमूले त्ति ताव एदेसिं वग्गाणं सलागाओ विरलिय बिगं करिय अण्णोण्णन्भत्थरासिणा पलिदोवम पढमवग्गमूलछेदणए ओवष्टिय लद्धं रूवूणभागहारेण गुणिदे इच्छिदद्धच्छेदण यसलागाणं मेलाओ होदि । णाणागुणहाणिसलागाओ पलिदोवमवग्गसलागछेदणएहि ऊणपलिदोवमछेदणयमेत्ताओ चैव होंति, ऊणा अहिया वा ण होंति त्ति कथं णव्वदे ? अविरुद्धाइरियवयणादो | एवं मोहणीयस्स णाणागुणहाणि सलागाणं पमाणपरूवणा कदा | मिलाकर पल्योपमके प्रथम वर्गमूलके अर्धच्छेदों में मिलानेपर नानागुणहानिशलाकाओंका प्रमाण होता है । शंका- इनको कैसे मिलाया जाता है ? समाधान- - पल्योपमकी वर्गशलाका प्रमाण वर्गसे लेकर पल्योपमके द्वितीय वर्गमूल तक इन वर्गोंकी शलाकाओंका विरलन कर दुगुणा करके अन्योन्याभ्यस्त राशि से पस्योपमके प्रथम वर्गमूलके अर्धच्छेदोंको अपवर्तित करनेपर जो लब्ध हो उसे रूपोनभागहारसे गुणित करनेपर इच्छित अर्धच्छेदशलाका औंका योग होता है । शंका - नानागुणहानिशलाकायें पल्योपमकी वर्गशलाकाओंके अर्धच्छेदोंसे हीन पल्योपमके जितने अर्धच्छेद हों इतनी ही हैं, कम व अधिक नहीं है; यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान- - यह अविरूद्ध आचार्यके वचनसे जाना जाता है । इस प्रकार मोहनीयकी नानागुणहानिशलाकाओंके प्रमाणकी प्ररूपणा की । विशेषार्थ – यहां परम्परोपनिधाके प्रसंगसे एक गुणहानिके निषेकोंकी संख्या बतलाकर मोहनीयकी नानागुणहानियोंका ठीक प्रमाण कितना है, यह युक्तिपूर्वक सिद्ध करके बतलाया गया है । साधारणतः मोहनीयकी गुणहानिशलाकायै पत्योपमके प्रथम वर्गमूलके असंख्यातवें भाग प्रमाण मानी जाती हैं। पर इससे वास्तविक संख्या ज्ञात नहीं होती । इसलिये इस संख्याका ठीक ज्ञान करानेके लिये बतलाया है कि यह संख्या पल्योपम के अर्धच्छेदोंसे तो कम है पर पल्योपमके प्रथम वर्गमूलके अर्धच्छेदोंसे अधिक है । इतना क्यों है, इसी बातको सिद्ध करनेके लिये युक्ति दी गई है । युक्ति वर्गणाखण्ड के प्रदेशविरचित अल्पबहुत्वके आधारसे दी गई है। वहां बतलाया है कि अन्तिम गुणहानिके समूचे द्रव्यसे प्रथम गुणहानि के प्रथम निषेकका द्रव्य असंख्यातगुणा है । यहां तीन बातें ज्ञातव्य हैं - अन्तिम गुणहानिके द्रव्यका प्रमाण, प्रथम गुणहानिके प्रथम निषेकके द्रव्यका प्रमाण और इन दोनोंके तारतम्यका वास्तविक ज्ञान एक गुणहानिमें पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूल प्रमाण निषेक होते हैं । साधारणतः इन निषेकों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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