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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, २, ४, २८. पुणो तिरूवाहियपुवभागहारस्स तिभागेण उवरिमविरलणमोवट्टिय लद्धे तत्थेव अवणिदे चउत्थणिसेयभााहारो होदि । तस्स संदिट्ठी । ७.२.१ ।।. एवमवणयणरूवाणि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणि होदूण गच्छमाणाणि केत्तियमद्धाणमुवरि गंतूण पलिदोवम; पमाणं पावेंति त्ति वुत्ते वुच्चदे- किंचूणतिगुणजवमज्झट्ठिमअण्णोण्णब्भत्थरासिणावट्टिदपलिदोवममेत्तद्धाणं सादिरेगमुवरि चडिदे परिहाणिरूवाणं पमाणं पलिदोवमं होदि । एत्थ संदिहि ठविय हिस्साणं पडिवोहो कायब्वो । एत्थुवउज्जती गाहा ---
अवहारेणोवट्टिदअवहिणिज्जम्मि जं हवे लद्धं । तेजोवट्टिदमिट्ठे अहिय' लद्धीय अद्धाणं ॥५॥
योगस्थानके भागहारमेंसे किस प्रक्रियासे कितना कम करने पर यह भागहार होगा यही विधि यहां बतलाई गई है। जघन्य योगस्थानके जीवोंकी संख्या १६ और तृतीय योगस्थानके जीवोंकी संख्या २४ है, इसलिये जघन्य योगस्थानके जीवोंकी संख्याके लानेके लिये १४२२ संख्याका जो भागहार बतलाया है उससे यह भागहार एक तिहाई कम हो
आयगा । इसीसे मूममें एक अधिक अधस्तन विरलन प्रमाण स्थान जाने पर उपरिम विरलनमें एक स्थानकी हानि बतलाई गई है। इस प्रकार तृतीय स्थानका भागहार १३ प्राप्त होता है । इसका भाग १४२२ में देने पर योगस्थानके तृतीय स्थानके जीवोंकी संख्या २४ लब्ध आती है।
पुनः तीन अधिक पूर्व भागहारके तृतीय भागसे उपरिम विरलनको अपवर्तित कर लब्धको उसीमेंसे कम करनेपर चतुर्थ निषेकका भागहार होता है। उसकी संदृष्टि७.११ है । इस प्रकार उत्तरोत्तर हीन किये जानेवाले अंक पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र होकर जाते हुए कितने स्थान ऊपर जाकर पल्योपमके प्रमाणको प्राप्त करते हैं, ऐसा पूछनेपर कहते हैं- कुछ कम तिगुणे यवमध्य और अधस्तन अन्योन्याभ्यस्त राशिसे अपवर्तित पल्योपम मात्र स्थानोंसे कुछ अधिक स्थान ऊपर चढ़नेपर घटाये जानेवाले अंकोंका प्रमाण पल्योपम होता है । यहां संदृष्टि स्थापित कर शिष्यों को प्रतिबोध कराना चाहिये । यहां उपयुक्त गाथा
भागहारका भज्यमान राशिमें भाग देनेपर जो लब्ध आता है उससे इष्टको भाजित करनेपर लब्धिके अधिक स्थान प्राप्त होते हैं ॥५॥
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काप्रतौ । अहिए ' इति पाठः ।
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