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४ २, ४, २८.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं
[८१ जहण्णजोगट्ठाणजीवपमाणेण सव्वदव्वे अवहिरिज्जमाणे असंखेज्जगुणहाणिकालेण अवहिरिज्जदि । तं जहा - एक्कम्हि जवमझे जदि जवमज्झहेट्ठिमअण्णोण्णब्भत्थरासिमेत्तजहण्णजोगट्ठाणजीवा लभंति तो किंचूणतिण्णिगुणहाणिमेत्तजवमज्झेसु किं लभामो त्ति जबमज्झस्स जवमझं सरिसमिदि अवणिय अण्णोण्णब्भत्थरासिणा किंचूणतिण्णिगुणहाणीसु गुणिदासु असंखेज्जगुणहाणीयो उप्पज्जति । तासिं संदिट्ठी/७१ || एदेण सव्वदब्वे भागे हिदे जहण्णजोगट्ठाणजीवा होति | १६ | ।
बिदियजोगट्ठाणजीवपमाणेण सव्वदव्वे अवहिरिज्जमाणे असंखेन्जगुणहाणिहाणंतरेण कालेण अवहिरिज्जदि । तं जहा--- जहण्णजोगट्ठाणजीवभागहारं विरलिय सव्वदव्वं समखंड करिय दिण्णे विरलणरूवं पडि जहण्णजोगट्ठाणदव्वं होदि । पुणो एदम्हादो बिदियणिसेगो एगपक्खेवणाहिओ ति तेण सह आगमणटुं भागहारपरिहाणी कीरदे । तं जहा- एदिस्से विरलणाए हेट्ठा एगगुणहाणि विरलिय जहण्णजोगट्ठाणदव्वं समखंडं करिय दिण्णे विरलणरूवं पडि एगेगपक्खेवपमाणं पावदि । ते घेत्तूण उवरिमरूवधरिदजहण्णजोगट्ठाणजीवेसु पक्खित्तेसु बिदियजोगट्ठाणजीवपमाणं होदि रूवाहियहट्टिमविरलणमेत्तद्धाणं गंतूण एगरूवपरिहाणी च
जघन्य योगस्थानके जीवोंके प्रमाणले सब द्रव्यका अपवर्तन करनेपर वह असंख्यात गुणहानियोंके कालसे अपवर्तित होता है। यथा- एक यवमध्यमें यदि यवमध्यकी अधस्तन अन्योन्याभ्यस्त राशिकी संख्या प्रमाण (१६४८ = १२८) जघन्य योगस्थानके जीव पाये जाते हैं तो कुछ कम तीन गुणहानि प्रमाण यवमयोंमें क्या प्राप्त होगा; इस प्रकार एक यवमध्य दूसरे यवमध्यके समान होनेसे इन दोनों गुणकोंको निकालकर अन्योन्याभ्यस्त राशिसे कुछ कम तीन गुणहानियोंको गुणित करनेपर असंख्यात गुणहानियां उत्पन्न होती हैं । उनकी संदृष्टि ११ x ८ = ७११ । इसका सब द्रव्यमें भाग देनेपर जघन्य योगस्थानवी जीव होते हैं १४२२७११=१६।
द्वितीय योगस्थानवी जीवोंके प्रमाणसे सब द्रव्यको अपहृत करनेपर वह असंख्यात गुणहानिस्थानान्तरकालसे अपहृत होता है। यथा-जघन्य योगस्थानके जीवोंके भागहारको विरलित कर सब द्रव्यको समखण्ड करके देने पर विरलन एक एकके प्रति जघन्य योगस्थानका द्रव्य प्राप्त होता है । फिर इससे द्वितीय निषेक चूंकि एक प्रक्षेप अधिक है अतः उसके साथ जघन्य योगस्थानका द्रव्य लाने के लिये भागहारको कम करते हैं। यथा- इस विरलनके नीचे एक गुणहानिको विरलित कर उसपर जघन्य योगस्थानके द्रव्यको समखण्ड करके देनपर विरलन रूपके प्रति एक एक प्रक्षेपका प्रमाण प्राप्त होता है। उनको ग्रहण कर उपरिम विरलनके प्रत्येक एकके प्रति प्राप्त हुए जघन्य योगस्थानवी जीवों में मिला देनेपर द्वितीय योगस्थानवी जीवोंका प्रमाण होता है और एक अधिक अधस्तन विरलन प्रमाण स्थान जाकर एक रूपकी हानि प्राप्त होती है। इस छ. वे, ११.
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