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________________ ६ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, १,१०. जाणदि । ओरालियसरीसिंदियणिज्जराणं ण भेदो, इंदियवदिरित्तओरालियसरीराभावादो ति उत्ते ण एस दोसो, सबिंदियाणमग्गहगादो । पुणो किर्मिदियं घेप्पदि ? चक्खिदियं । कुदो? सेसेंदिएहितो अप्पपरिमाणत्तादो, सगारंभकपोग्गलखंधाणं सण्णहत्तादो वा । इदमेव इंदियं घेप्पदि त्ति कधं णव्वदे ? गुरूवदेसादो। घाण-सोदिदिएहिंतो चक्खिदियस्स महल्लत्तं दिस्सदे चे ण, चक्षुगोलयमज्झट्ठियाए मसूरियागाराए ताराए चक्खिदियत्तन्भुवगमादो । चक्खिदियणिज्जरा वि जहण्णुक्सस्स-तब्यदिरित्तभेएण तिविहा, तत्थ काए गहणं ? तव्वदिरित्ताए । कुदो ? सामग्णणिदेसादो । जहण्णुक्कस्सदव्वाणं मज्झिमदव्ववियप्पे तव्वदिरित्ता उज्जुमदी जाणदि । खेतेण जहणं गाउवपुधत्तं, उक्कस्सेण जोयणपुधत्तं' । जहण्णुक्कस्स शंका-औदारिक शरीरनिर्जरा और इन्द्रियनिर्जराके बीच कोई भेद नहीं है, क्योंकि, इन्द्रियोंसे भिन्न औदारिक शरीरका अभाव है ? समाधान-इस शंकापर कहते हैं कि यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, यहां सब इन्द्रियोंका ग्रहण नहीं है। शंका-फिर कौनसी इन्द्रियका ग्रहण है ? समाधान-चक्षुरिन्द्रियका ग्रहण है, क्योंकि, वह शेष इन्द्रियोंकी अपेक्षा अल्पप्रमाण रूप है व अपने आरम्भक पुद्गलोंकी श्लक्ष्णता अर्थात् सूक्ष्मतासे भी युक्त है। शंका-यही इन्द्रिय ग्रहण की गई है, यह कहांसे जाना जाता है ? समाधान - यह गुरुके उपदेशसे जाना जाता है । शंका-घाण और श्रोत्र इन्द्रियकी अपेक्षा चक्षुरिन्द्रियके विशालता देखी . जाती है? समाधान-ऐसा नहीं है, क्योंकि, चक्षुगोलकके मध्यमें स्थित मसूरके आकार ताराको चक्षुरिन्द्रिय स्वीकार किया है। शंका-चक्षुरिन्द्रियनिर्जरा भी जघन्य, उत्कृष्ट और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकार है, उनमें कौनसी निर्जराका ग्रहण है ? समाधान-तद्व्यतिरिक्त निर्जराका ग्रहण है, क्योंकि, उसका सामान्य निर्देश है। जघन्य और उत्कृष्ट द्रव्यके मध्यम द्रव्यविकल्पोंको तद्व्यतिरिक्त ऋजुमति मनापर्ययहानी जानता है। क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्यसे वह गम्यूतिपृथक्त्व और उत्कर्षसे क्षेत्रतो जघन्येन गव्यूतिपृथक्त्वम्, उत्कर्षेण योजनपृथक्त्वस्याम्यन्तरं न बहिः । स. सि. १, २३. त. रा. १, २३, ९. गाउयपुधत्तमवरं सक्कस्सं होदि जोयणपुधत्तं ॥ गो. जी. ४५५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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