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________________ ४, १, ६. ] कदिअणियोगद्दारे कोट्टबुद्धिरिद्धिपरूवणा ( ५३ जहा मदि-सुद-ओहिणाणेहिंतो केवलणाणमाहध्पमवगम्मदे तहा मिच्छत्तादो सम्मत्तमाहप्पस्स अवगमाभावादो । णच जो जस्स भत्ता मित्तो वा सो तव्विरोहीणं भर्त्ति कुणइ, विरोहायो । पच्छाणुपुव्विकमपदंसणङ्कं वा देसोहिजिणादीणं पुव्वं णमोक्कारो को | संपधि सुद-मणपज्जवणाणत्तवाई मदिणाणपुव्वा इदि कट्टु महणाणम्मि समुप्पण्णसद्ध गोदममडास्ओ उत्तरसुतेहि मदिणाणीणं णमोक्कारं कुणदि णमो को बुद्धीणं ॥ ६ ॥ ― कोष्ठयः शालि-व्रीहि-यव-गोधूमादीनामाधारभूतः कुस्थली' पल्यादिः । सा चासेर्सदव्यपज्जायधारणगुणेण कोट्ठसमाणा बुद्धी कोट्ठो, कोट्ठा च सा बुद्धी च कोट्ठबुद्धी' । एदिस्से अत्थधारणकालो जहणेण संखेज्जाणि उक्कस्सेण असंखेज्जाणि वासाणि । कुदो ? ' ज्ञानोंसे केवलज्ञानका माहात्म्य जाना जाता है उस प्रकार मिथ्यात्वसे सम्यक्त्वका माहात्म्य नहीं जाना जाता। दूसरे, जो जिसका भक्त अथवा मित्र होता है वह उसके विरोधियों की भक्ति नहीं करता है, क्योंकि, ऐसा करनेमें विरोध है । अथवा, पश्चादानुपूर्वी अर्थात् विपरीत क्रम दिखलानेके लिये देशावधि जिनादिकों को पूर्वमें नमस्कार किया है । काल अब श्रुत और मनःपर्यय ज्ञान तथा तप आदि चूंकि मतिज्ञानपूर्वक होते हैं अतः मतिज्ञानमें श्रद्धा उत्पन्न होनेसे गौतम भट्टारक उत्तर सूत्रले मतिज्ञानियोंको नमस्कार करते हैं कोष्ठबुद्धि धारक जिनको नमस्कार हो ॥ ६ ॥ शालि, व्रीहि, जौ और गेहूं आदिके आधारभूत कोथली, पल्ली आदिका नाम कोष्ठ है । समस्त द्रव्य व पर्यायोंको धारण करने रूप गुणसे कोष्ठके समान होनेसे उस बुद्धिको भी कोष्ठ कहा जाता है। कोष्ठ रूप जो बुद्धि वह कोष्ठबुद्धि है । इसका अर्थधारणकाल जघन्यसे संख्यात वर्ष और उत्कर्षसे असंख्यात वर्ष है, क्योंकि, ' असंख्यात और Jain Education International १ प्रतिषु ' कुस्थनी ' इति पाठः । २ प्रतिषु ' सादासेस-' इति पाठः । ३ उक्करिसधारणाए जुत्तो पुरिसो गुरूवएसेणं । णाणाविहगंथेसुं वित्थारे लिंगसइबीजाणि ॥ गहिऊन नियमदीए मिस्सेण विणा घरेबि मदिकोट्ठे । जो कोइ तस्स बुद्धी णिद्दिट्ठा कोट्ठबुद्धि चि ॥ ति. प. ४, ९७८, ९७९. कोष्ठागारिकस्थापितानामसंकीर्णानामविनष्टानां भूयसां धान्यबीजानां यथा कोष्ठेऽवस्थानं तथा परोपदेशादनवधारितानामर्थ प्रन्थबीजानां भूयसामव्यतिकीर्णाना बुद्धाववस्थानं कोष्ठबुद्धिः । त. रा. ३, ३६, २. कोट्टयम नसुनिगल सुतत्था कोट्ठबुद्धीया ॥ प्रवचनसारोद्धार १५०२. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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