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१.] छक्खंडागमे यणाखंड
[४, १, २. किं च खेत्त-कालाणं खओवसमा णांसखेज्जगुणक्कमेण देसोहिम्हि अवडिदा,
अंगुलमावलियाए भागमसंखेन्ज दो वि संखेज्जा ।
अंगुलमावलियंतो आवलियं चांगुलपुधत्तं ॥ १५॥ इच्चादिगाहावग्गणसुत्तेहि सह विरोहादो । एवमोही परूविदा ।
अवधयश्च ते जिनाश्च अवधिजिनाः। कधमोहिणाणस्स गुणस्स गुणितं जुज्जदे ? ण, गुणिव्वदिरेगेण गुणाणमभावादो। किमट्ठमोहिणा जिणा विसेसिज्जते ? अण्णोहिजिणपडिसेहढे । के ओहिजिणा ? तिरयणसहिदोहिणाणिणो । तेसिं णमो णमोक्कारो होदि त्ति
कालके क्षयोपशम असंख्यातगुणित क्रमसे देशावधिमें अवस्थित नहीं हैं, क्योंकि,
. प्रथम काण्डको जघन्य देशावधिका क्षेत्र अंगुलका असंख्यातवां भाग और जघन्य काल आवलीका असंख्यातवां भाग है। इसी काण्डकमें उत्कृष्ट क्षेत्र और काल क्रमशः अंगुल व आवलीके संख्यातवें भाग प्रमाण हैं। द्वितीय काण्डको क्षेत्र घनांगुल और काल कुछ कम आवली प्रमाण है। तृतीय काण्डकमें क्षेत्र अंगुलपृथक्त्व और काल आवली प्रमाण है ॥ १५ ॥
इत्यादि वर्गणा खण्डके गाथासूत्रोंके साथ विरोध होगा। इस प्रकार अवधिज्ञानकी प्ररूपणा की गई है।
अवधिशान स्वरूप जो जिन वे अवधिजिन हैं। शंका-गुण स्वरूप अवधिज्ञानके गुणीपना कैसे युक्त है ?
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, गुणीको छोड़कर गुणोंका अभाव है। अर्थात् गुण और गुणीमें भेद न होनेसे अवधिज्ञान स्वरूप जिनके कहने में कोई विरोध नहीं है।
• शंका-जिनोंको अवधिसे विशेषित किसलिये किया जाता है ?
समाधान- अन्य अवधिजिनोंके प्रतिषेधार्थ जिनोंको अवधिसे विशेषित किया गया है।
शंका-अवधिजिन कौन हैं ? समाधान-रत्नत्रय सहित अवधिशानी अवधिजिन हैं। ऐसे अवधिजिनोंको नमः अर्थात् नमस्कार हो यह अभिप्राय है।
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१ कापतौ ' खत्रसमेणा-' इति पाठः ।
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