SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 460
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, १, ७१.] कदिअणियोगहारे करणकदिपरूवणा [१३१ काइयअपज्जत्त-सव्वसुहुमतेउकाइय-वाउकाइय-सव्ववणप्फदि-सव्वणिगोद-सव्ववादरवणप्फदिपत्तेयसरीर-तसअपज्जत्ताणं पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो। ___पंचिंदियद्गम्मि सव्वत्थोवा ओरालिय-वेउन्वियपरिसादणकदी, तिरिक्खेसु विउव्वमाणाणं मूलसरीरं पविस्समाणाणं च गहणादो । संघादणकदी असंखेज्जगुणा, तिरिक्खदेवेसुप्पज्जमाणजीवग्गहणादो। संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । सुगमं । आहारतिगमोघं । तेजा-कम्मइयदोपदाणं मणुसभंगो । तेउकाइय-वाउकाइय-बादरतेउकाइय-बादरवाउकाइयाणं तेसिं पज्जत्ताणं च पंचिंदियतिरिक्खभंगो । तसदुगस्स पंचिंदियदुगभंगो।। पंचमणजोगि-पंचवचिजोगीसु सव्वत्थोवा ओरालिय-वेउब्वियपरिसादणकदी। संघादणपरिसादणकदी असंखेज्जगुणा, देवाणं संखेज्जभागत्तादो । सव्वत्थोवा आहारपरिसादणकदी । संघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । सुगमं । कायजोगीसु ओरालिय-वेउब्विय-आहारतिण्णिपदा ओघं । ओरालियकायजोगीसु ................... वायुकायिक, सब वनस्पतिकायिक, सब निगोद, सब बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर और उस अपर्याप्तोंकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तोंके समान है। पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तोंमें औदारिक व वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं, क्योंकि, तिर्यंचों में विक्रिया करनेवालों और मूल शरीरमें प्रवेश करनेवालोंका ग्रहण है। इनसे उक्त दोनों शरीरोकी संघातनकृति यक्त जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, यहां तिर्यंचों व देवोंमें उत्पन्न होनेवाले जीवोंका प्रहण है। इनसे उनकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। कारण सुगम है। आहारकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। तैजस और कार्मणशरीरके दो पदोकी प्ररूपणा मनुष्योंके समान है। तेजकायिक, वायुकायिक, बादर तेजकायिक, बादर वायुकायिक तथा उनके पर्याप्तोंकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके समान है। त्रस और उस पर्याप्तोंकी प्ररूपणा क्रमशः पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तोंके समान है। पांच मनयोगी और पांच वचनयोगियोंमें औदारिक और वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उनकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, वे देवोंके संख्यातवें भाग हैं । आहारकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं । कारण सुगम है। काययोगियोंमें औदारिक, वैक्रियिक और आहारकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा ओघके समान है । औदारिककाययोगियोंमें औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy