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________________ १, १, ७१.] कदिअणियोगदारे करणकदिपवणा [ ४३१ पंचिंदियतिरिक्खतिगम्मि सव्वत्योवा ओरालियपरिसादणकदी, असंखेज्जघणंगुलमेत्तसेडिपमाणत्तादो । संघादणकदी असंखेज्जगुणा, सग-सगुवक्कमणकालोवट्टिदसग-सगोधरासिग्गहणादो । संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा, सगरासिस्स असंखेज्जाणं भागाणं गहणादो । वेउब्वियतिगं तिरिक्खोघ, तत्थ पंचिंदियरासिस्स पाधणियादो। • पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तेसु सव्वत्थोवा ओरालियसंघादणकदी । संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । कारणं सुगमं । मणुस्सेसु सव्वत्थोवा ओरालियपरिसादणकदी, संखेज्जत्तादो । संघादणकदी असंखेजगुणा, अपजत्तेसु उप्पज्जमाणासंखेज्जजीवग्गहणादो। संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा, सयलमणुस्सजीवग्गहणादो। सव्वत्थोवा वेउब्वियसंघादणकदी, संखेज्जत्तादो । परिसादणकदी संखेज्जगुणा, अंतोमुहुत्तसंचिदत्तादो । संघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया मूलसरीरमपविस्सिय मदजीवेहि । सव्वत्थोवा आहारयसंघादणकदी। परिसादणकदी संखेज्जगुणा । संघादण .................. पंचेन्द्रिय तिर्यंच आदिक तीनमें औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं, क्योंकि, वे असंख्यात धनांगुल मात्र जगणियोंके बराबर हैं । इनसे उसकी संघातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, अपने अपने उपक्रमणकालसे अपवर्तित अपनी अपनी ओघराशिका यहां ग्रहण है। इनसे उसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, यहां अपनी राशिके असंख्यात बहुभागोंका ग्रहण है। वैक्रियिकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा तिर्यंच ओघके समान है। क्योंकि, उनमें पंचेन्द्रिय राशिकी प्रधानता है। ___पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे उसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं । इसका कारण सुगम है। ___ मनुष्यों में औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं, क्योंकि, वे संख्यात हैं । इनसे उसकी संघातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, अपर्याप्तों में उत्पन्न होनेवाले असंख्यात जीवोंका यहां ग्रहण है । इनसे उसकी संघातनपरिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, इनमें समस्त मनुष्योंका ग्रहण है। ___ वैक्रियिकशरीरकी संघातनकति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं, क्योंकि, वे संख्यात हैं। इनसे उसकी परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं, क्योंकि, वे अन्तर्मुहूर्तमें संचित हैं। इनसे उसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव मूल शरीरमें प्रवेश न कर मृत्युप्राप्त जीवोंसे विशेष अधिक हैं। आहारकशरीरकी संघातनकति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उनकी परि शासन कृति युक्त जीय संख्यातगुणे हैं । इनसे उसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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