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________________ १८] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, १, ७१. पच्च जद्दण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण सागरोवमसदपुधत्तं । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादण की थि अंतरं । वेदामपणा पदा ओघं । अवगदवेदेसु ओरालियपरिसाद णकदीए णाणाजीवं पहुच्च जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण छम्मासा । एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण अंतामुहुतं । संघादण-परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च ओघं । एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्से तिणिसमया । तेजा - कम्मइयदोपदा ओघं । कोधादिचदुक्कस्स ओरालियसंघादणकदीए ओरालिय- वेउब्विय परिसादणकदीए तेजाकम्यसंघादणपरिसा दणकदीए णाणेगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । ओरालियसंघादणपरिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च ओघं । एयजीवं पडुच्च जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण अतोमुहुतं । उव्वियसंघादणकदीए णाणेगजीवं पडुच्च जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोसुहुतं । संघादण परिसा दणकदीए णाणाजीवं पडुच्च ओघं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्से अंतोमुहुत्तं । आहारतिष्णिपदाणं मणजोगिभंगो | अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे सागरोपमशतपृथक्त्व काल प्रमाण होता है । तैजस व कार्मणशरीर की संघातन परिशातनकृतिका अन्तर नहीं होता । नपुंसकवेदियों में अपने पदोंकी प्ररूपणा ओघके समान है । अपगतवेदियों में औदारिकशरीरकी परिशातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे छह मास होता है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य व उत्कर्षले अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा ओघके समान है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्थ व उत्कर्षसे तीन समय प्रमाण होता हैं । तैजस और कार्मणशरीर के दो पदोंकी प्ररूपणा ओघके समान है । क्रोधादि चार कषाय युक्त जीवोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृति, औदारिक व वैकिकशरीरकी परिशातनकृति तथा तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना और एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। औदारिकशरीरकी संघातन परिशातनकृतिके अन्तर की प्ररूपणा माना जीवोंकी अपेक्षा ओघके समान है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है। वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर नाना व एक जीवकी अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है। वैक्रियिकशरीरकी संघातन परिशातनकृति के अन्तर की प्ररूपणा नाना जीवोंकी अपेक्षा ओघके समान है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । आहारकशरीर के तीनों पदोंकी अन्तरप्ररूपणा मनयोगियोंके समान है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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