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________________ ४१६ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, १, ७१. कायजोगीसु सगपदाणं णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण बारसमुहुत्ता । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । आहारकायजोगि आहार मिस्सकाय जोगीसु सगपदाणं' णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण वासपुधत्तं । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । कम्मइयाजोगी ओरालियपरिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण वासपुधत्तं । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । तेजा-कम्मइयएगपदस्स णत्थि अंतरं । इत्थवेदे ओरालयसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च पंचिदियपज्जत्तभंगो । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं तिसमऊणं, उक्कस्सेण पणवण्णपलिदोवमाणि पुव्वकोडीए समएण च अहियाणि । ओरालिय- वेउब्विय परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च ओघ । एगजीवं पडुच्च जहणेण अंत मुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमसदपुधत्तं । ओरालियसंघादण - परिसादणकदीए गाणाजीव पडुच्च ओघं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्करसेण पणवण्णपलिदोवाणि अंतोमुहुत्ते तिसमयाहिएण अव्वहियाणि । वेउव्वियसंघादणकदीए णाणाजीव पहुच्च होता । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों में अपने पदोंका अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से बारह मुहूर्त प्रमाण होता है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता । आहारकाययोगी और आहारमिश्रकाययोगियों में अपने अपने पदोंका अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे वर्षपृथक्त्व काल प्रमाण होता है । एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता । कार्मणकाययोगियों में औदारिकशरीरकी परिशातनकृतिका अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे वर्षपृथत्क्व काल प्रमाण होता है । एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता । तैजस व कार्मणशरीर के एक पदका अन्तर नहीं होता । स्त्रीवेदी जीवोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा नाना जीवोंकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय पर्याप्तोंके समान है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे तीन समय कम अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे एक समय और पूर्वकोटिसे अधिक पचवन पल्य प्रमाण होता है। औदारिक और वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृतिका अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा ओघके समान है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण और उत्कर्ष से पल्योपमशतपृथक्त्व काल प्रमाण होता है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा ओघके समान है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से तीन समय और अन्तर्मुहूर्तसे अधिक पचवन पल्य प्रमाण होता वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा अघन्य से एक समय और 1 Jain Education International १ मप्रतिपाठोऽयम्, प्रतिष्वत्र ' अप्पप्पणी पदाणं ' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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