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________________ छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, १, २. ववहारो कदो। एसो दवट्ठियणयणिदेसो ण होदि, पज्जवट्ठियणयाहियारादो । परमसव्वाणंतोहीणं पि गहणं ण होदि, उवरि तेसिं पुधसुत्तदंसणादो। तदो देसोहीए एसो णिदेसो त्ति दट्ठव्वो। कधमोहि त्ति णामेगदेसेण देसोही अवगम्मदे ? ण, सत्यहामा भामा, भीमसेणो सेणो, बलदेवो देवो इच्चाईसु णामेगदेसादो वि णामिल्लविसयणाणुप्पत्तिदसणादो । सा च देसोही तिविहा- जहण्णा उक्कस्सा अजहण्णाणुक्कस्सा चेदि । तत्थ जहण्णदेसोहीए अण्णहापमाणपरूवणोवायाभावादो जहण्णविसयपरूवणामुहेण जहण्णाहीए पमाणपरूवणा कीरदे । तं जहा-- विसओ चउविहो दब-खेत्त-काल-भावभेएण। तत्थ जहण्णदव्वपमाणे भण्णमाणे सगविस्ससोवचयसहिदकम्मविरहिद-ओरालियसरीरदव्वे सविस्ससोवचए घणलोगेण भागे हिदे तत्थ एगभागो जहण्णोहिदव्वं होदि। ओरालियसरीरं सोवचयं भज्जमाणं घणलोगो चेव यह द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा निर्देश नहीं है, क्योंकि, पर्यायार्थिक नयका अधिकार है । यहां परमावधि, सर्वावधि और अनन्तावधिका भी ग्रहण नहीं होता, क्योंकि, आगे इनके पृथक् सूत्र देखे जाते हैं। इसी कारण यह देशावधिका निर्देश है ऐसा समझना चाहिये? शंका-'अवधि' इस नामके एक देशसे देशावधि कैसे जाना जाता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि भामासे सत्यभामा, सेनसे भीमसेन और देवसे बलदेव, इत्यादिकोंमें नामके एक देशसे भी नामवालोंको विषय करनेवाले ज्ञानकी उत्पत्ति देखी जाती है। वह देशावधि तीन प्रकार है- जघन्य, उत्कृष्ट और अजघन्यानुत्कृष्ट । उनमें चूंकि जघन्य अवधिविषयकी प्रमाणप्ररूपणाके विना जघन्य देशावधिकी प्रमाणप्ररूपणाका कोई उपाय है नहीं, अतः जघन्य विषयकी प्ररूपणा करते हुए जघन्य अवधिके प्रमाणकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके भेदसे विषय चार प्रकार है। उनमें जघन्य द्रव्यका प्रमाण कहनेपर अपने विनसोपचय सहित कर्मसे रहित व अपने विनसोपचय सहित औदारिकशरीर (नोकर्म) द्रव्यमें घनलोकका भाग देनेपर उसमें एक भाग प्रमाण जघन्य अवधि द्रव्य होता है। शंका-विनसोपचय सहित औदारिकशरीर भाज्य राशि और घनलोक ही १ क. पा. मा. १ पृ. १७. २ णोकम्मुरालसंच मज्झिमजोगज्जयं सविस्सचयं । लोयविभस जाणदि अवरोही दबदो णियमा ।। गो. जी. ३७७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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