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________________ '५८२) छक्खंडागमे वैयणाखंड [४, १.१. 'पहुच्च जहण्णेण दसवाससहस्साणि तिसमऊणाणि, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि समऊणाणि । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पड्डच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णण दसवाससहस्साणि, उक्कस्सेण तेत्तीस सागरोवमाणि । पढमाए पुढवीए वेउव्वियसंघादणकदी णारगभंगो। एवं सव्वपुढवीसु । वेउब्वियसंघादणं-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णण दसवाससहस्साणि तिसमऊणाणि, उक्कस्सेण “सागरोवमं समऊणं । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण णारगभंगो । उक्कस्सेण सागरोवमं । बिदियादि जाव सत्तमि त्ति वेउब्वियसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पड्डुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एग-तिण्णि-सत्त-दस-सत्तारस-बावीससागरोवमाणि दुसमऊणाणि । उक्कस्सेण तिण्णि-सत्त-दस-सत्तारस-बावीस-तेत्तीससागरोवमाणि समऊणाणि । तेजा ............ है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे तीन समय कम दश हजार वर्ष और उत्कर्षसे एक समय कम तेतीस सागरोपम काल है। तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे दश हजार वर्ष और उत्कर्षसे तेतीस सागरोपम काल है। प्रथम पृथिवीमें वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिकी कालप्ररूपणा सामान्य नारकियोंके समान है। इसी प्रकार सर्व पृथिवियों में समझना चाहिये । वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे तीन समय कम दश हजार वर्ष और उत्कर्षसे एक समय कम एक सागरोपम काल है। तैजस और कार्मण शरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य कालकी प्ररूपणा नारकियोंके समान है। उत्कृष्ट काल एक सागरोपम है। द्वितीय पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक नारकियोंमें वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्रमशः दो समय कम एक सागर, दो समय कम तीन सागर, दो समय कम सात सागर, दो समय कम दस सागर, दो समय कम सत्तरह सागर और दो समय कम बाईस सागर काल है। उत्कर्षसे एक समय कम तीन सागर, एक समय कम सात सागर, एक समय कम दस सागर, एक समय कम सत्तरह सागर, एक समय कम बाईस सागर और एक समय कम तेतीस सागर काल है । तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातन । प्रतिषु · वेउव्वियसंघादणं संपादण- ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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