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________________ ३७०] . छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, १, १. 'हाराण ओरालियपरिसादणकदीए केवलिभंगो। तेजा-कम्मइयपरिसादणं लोगस्स असंखेज्जदिभागे । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी सव्वलोगे । एवं खेत्ताणुगमो समत्तो । पोसणाणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघण आदेसेण य । तत्थ ओघेण ओरालियसंघादण. संघादणपरिसादणकदी तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगो । ओरालियपरिसादणकदीहि केवडियं खेतं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जा वा भागा सव्वलोगो वा । वेउव्वियसंघादण-परिसादणकदीहि केवडियं खेतं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो सबलोगो वा। वेउब्वियसंघादणपरिसादणकदीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्ठ-चोद्दसभागा वा देसूणा सव्वलोगो वा। आहारतिण्णिपदा तेजा-कम्मइयपरिसादणकदीहि केवडियं खेत्तं फोसिद ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो। आदेसण णिरयगदीए णेरइएसु वेउब्वियसंघादणकदीए खेत्तभंगो। वेउब्वियन्तेजाकम्मइयसंघादण-परिसादणकदीहि लोगस्स असंखेज्जदिभागो छचोदसभागा वा देसूणा । परिशातनकृति युक्त जीर्वोकी प्ररूपणा केवलियोंके समान है। इनमें तैजस व कार्मण शरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं। तैजस व कार्मण शरीरकी संघातन-परिशानकृति युक्त जीव सर्व लोकमें रहते हैं। इस प्रकार क्षेत्रानुगम समाप्त हुआ। स्पर्शनानुगमसे ओघ और आदेशकी अपेक्षा दो प्रकार निर्देश है। उनमें ओघसे मौदारिकशरीरकी संघातनकृति व संघातन-परिशातनकृति तथा तैजस व कार्मण शरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श किया गया है? उक्तं जीवों द्वारा सर्व लोक स्पर्श किया गया है। औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श किया गया है? उक्त जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग, असंख्यात बहुभाग अथवा सर्व लोक स्पर्श किया गया है। वैक्रियिकशरीरकी संघातन व परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श किया गया है ? उक्त जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा सर्व लोक स्पर्श किया गया है। वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श किया गया है ? उक्त जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग, कुछ कम आठ बटे चौदह भाग, अथवा सर्व लोक स्पर्श किया गया है।आहारकशरीरके तीनों पद युक्त जीवों द्वारा तथा तैजस व कार्मण शरीरकी परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श किया गया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श । किया गया है। आदेशकी अपेक्षा नरकगतिमें नारकियों में वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीवोंकी स्पर्शनप्ररूपणा क्षेत्रमरूपणाके समान है। वैक्रियिक, तैजस व कार्मणशरीरकी संवातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम छह बटे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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