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________________ १, १, ६६.] कदिअणियोगहारे फोसणाणुगमो [२८९ आणदादि जाव अच्चुदा त्ति तिपदसंचिदेहि केवडियं खेत फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो छचोद्दसभागा वा देसूणा । णवगेवज्जादि जाव सवढे त्ति खेत्तभंगो । ___ एवमाहारदुग-सामाइयछेदोवट्ठावणसुद्धिसंजद-परिहारसुद्धिसंजद-सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजद-मणपज्जवणाणीणं पि वत्तव्यमविसेसादो। बादरेइंदिय-सुहुमेइंदियाणं तेसिं पज्जत्तापज्जत्ताणं च खेत्तभंगो । पंचिंदियदुगेण केवडियं खेतं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्ठचोद्दसभागा सव्वलोगो केवलिभंगो वा । ___ कायाणुवादण पुढविकाइय-आउकाइय-तेउकाइय-वाउकाइयाणं तेसिं चेव बादराणं [तेसिं] चेव अपज्जत्ताणं सव्वसुहुम-तप्पजत्तापज्जत्ताणं वणप्फदि-णिगोद-बादरवणप्फदि-बादरणिगोदाणं तेसिं पज्जत्तापज्जत्ताणं बादरवणप्फदिपत्तेयसरीराणं तेसिमपज्जत्ताणं च कदिसंचिदेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो सव्वलोगो [वा] । बादरवाउपज्जत्तएहि कदिसंचिदेहि केवडियं खेत फोसिदं ? लोगस्स संखेज्जदिभागो सबलोगो वा । णोकदिअवत्तव्वसंचिदेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो सव्वलोगो वा । तस आनत आदिसे लेकर अच्युत कल्प तक उक्त तीन पदोंमें संचित जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं । नौ ग्रेवयकोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि विमान तक क्षेत्रके समान प्ररूपणा है । इसी प्रकार आहारद्विक, सामायिकछेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत, परिहारशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसाम्परायशुद्धिसंयत और मनःपर्ययशानी जीवोंके भी कहना चाहिये, क्योंकि, इनमें षता नहीं है। बादर एकेन्द्रिय और सूक्ष्म एकेन्द्रिय तथा उनके पयोप्त व अपर्याप्तोंकी प्ररूपणा क्षेत्रके समान है। पंचेन्द्रिय व पंचेन्द्रिय पर्याप्तों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? लोकका असंख्यातवां भाग, आठ बटे चौदह भाग या सर्व लोक स्पृष्ट है; अथवा इनकी प्ररूपणा केवली जीवोंके समान है। कायमार्गणानुसार पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजकायिक, वायुकायिक और उनके ही बादर व उनके ही अपर्याप्त, सब सूक्ष्म व उनके पर्याप्त अपर्याप्त, वनस्पतिकायिक, निगोद जीव, बादर वनस्पतिकायिक, बादर निगोद, उनके पर्याप्त अपर्याप्त तथा बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर व उनके अपर्याप्तोंके कृतिसंचित जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पष्ट है ? लोकका असंख्यातवां भाग अथवा सर्व लोक स्पष्ट है। कृतिसंचित बादर वायुकायिक पर्याप्तों द्वारा कितना क्षेत्र स्पष्ट है ? लोकका संख्यातवां भाग अथवा सब लोक स्पृष्ट है । नोकृति और अवक्तव्य संचित बादर वायुकायिक पर्याप्तों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? लोकका असंख्यातवां भाग अथवा सर्व लोक स्पृष्ट है। प्रस घप्रस छ. क३७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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