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________________ ४, १, ६६. ] कदिअणियोगद्दारे पमाणाणुगमो ૨૮૨ णोकदिसंचिदजीवपमाणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तं होदि । अवत्तव्वकालं दोहि रूहि गुणदे अवत्तव्वसंचयपमाणं होदि । कदिसंचयकालं तप्पा ओग्गअसंखेज्जरूवेहि गुणिदे कदिसंचिदपमाणं होदि । एवं सत्तसु पुढवीसु वत्तव्वं । तिरिक्खगदी तिरिक्खेसु कदि - णोकदि - अवत्तव्वसंचिदा केवडिया ? अनंता । एत्थ णोकदि - अवत्तव्वाणमसंखेज्जपोग्गल परियहेर्हितो उवक्कमणकाले पुव्वं व जीवसंचए आणिदे अंता जोकदि - अवत्तव्वसंचिदा जीवा होंति । सामण्णुवक्कमणकालेण संचिदजीवेर्हितो णोकदि - अवत्तव्वसंचिदजीवेसु अवणिदेसु सेसा तिरिक्खा कदिसंचिदा होंति । ण णिच्चनिगोदाणमेत्थ गहणं, कदि - णोकदि - अवत्तव्वसरूवेण असंचिदत्तादो । पंचिंदियतिरिक्खच उक्कम्मि कदि णोकदि - अवत्तव्वसंचिदा केत्तिया ? असंखेज्जा । पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्तादीण संखेज्जासंखेज्जवासाउआण अपज्जत्ताणं च अंतोमुहुत्तआउआणं णोकदि-अवत्तव्वसंचिदा आवलियाए असंखेज्जदिभागो, आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तफलगुणिदसंखेज्जवासेसु अंत मुहुत्तन्भंतरसंखेज्जावलियासु च संखेज्जावलियाहि ओट्टिदेसु आवलियाए असंखेज्जदिभागुवक्कमणकालुवलंभादो | णोकदि - अवत्तव्वसंचिदजीवेर्हितो' वदि करनेपर नोकृतिसंचित जीवोंका प्रमाण पत्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र अवक्तव्यकालको दो रूपोंसे गुणित करनेपर अवक्तव्य संचित जीवोंका प्रमाण कृतिसंचयकालको उसके योग्य असंख्यात रूपोंसे गुणित करनेपर कृतिसंचित प्रमाण होता है । इस प्रकार सात पृथिवियों में कहना चाहिये । तिर्यचगतिमें तिर्यचोंमें कृति, नोकृति और अवक्तव्यसंचित जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। यहां नोकृति और अवक्तव्योंके असंख्यात पुद्गल परिवर्तनोंमेंसे उपक्रमणकालमें पूर्वके समान जीवसंचयके निकालनेपर नोकृति और अवक्तव्यसंचित जीव अनन्त होते हैं । सामान्य उपक्रमणकाल से संचित जीवोंमेंसे नोकृति और अवक्तव्यकृति संचित जीवोंके कम कर देनेपर शेष तिर्येच कृतिसंचित होते हैं। यहां नित्यनिगोद जीवोंका ग्रहण नहीं है, क्योंकि, वे कृति, नोकृति और अवक्तव्य स्वरूपसे संचित नहीं है । होता है । होता है । जीवोंका पंचेन्द्रिय तिर्यच आदिक चारमें कृति, नोकृति व अवक्तव्य संचित कितने हैं ? असंख्यात हैं । संख्यात व असंख्यात वर्ष की आयुवाले पंचेन्द्रिय तिर्यत्र पर्याप्त आदिक तथा अन्तर्मुहूर्त आयुवाले अपर्याप्तों में नोकृति और अवक्तव्य संचित आवलीके असंख्यातवें भाग हैं, क्योंकि, आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र फल राशिसे गुणित संख्यात वर्षो और अन्तर्मुहूर्त के भीतर संख्यात आवलियोंको संख्यात आवलियोंसे अपवर्तित करनेपर भावली असंख्यातवें भाग उपक्रमणकाल प्राप्त होता है । नोकृति और अवक्तव्य संचित १ प्रतिषु ' जीवेहि तैसि ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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